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श्रीहरि: #
श्रीगर्ग-संहिता
(गिरिराज खण्ड)
पाँचवाँ अध्याय (पोस्ट
01)
गोपों का श्रीकृष्ण के विषय में संदेहमूलक विवाद तथा श्रीनन्दराज
एवं वृषभानुवर के द्वारा समाधान
श्रीनारद उवाच -
एकदा सर्वगोपाला गोप्यो नन्दसुतस्य तत् ।
अद्भुतं चरितं दृष्ट्वा नन्दमाहुर्यशोमतीम् ॥१॥
गोपा ऊचुः -
हे गोपराज त्वद्वंशे कोऽपि जातो न चाद्रिधृक् ।
न क्षमस्त्वं शिलां धर्त्तुं सप्ताहं हे यशोमति ॥२॥
क्व सप्तहायनो बालः क्वाद्रिराजस्य धारणम् ।
तेन नो जायते शंका तव पुत्रे महाबले ॥३॥
अयं बिभ्रद्गिरिवरं कमलं गजराडिव ।
उच्छिलींध्रं यथा बालो हस्तेनैकेन लीलया ॥४॥
गौरवर्णा यशोदे त्वं नन्द त्वं गौरवर्णधृक् ।
अयं जातः कृष्णवर्ण एतत्कुलविलक्षणम् ॥५॥
यद्वाऽस्तु क्षत्रियाणां तु बाल एतादृशो यथा ।
बलभद्रे न दोषः स्याच्चन्द्रवंशसमुद्भवे ॥६॥
ज्ञातेस्त्यागं करिष्यामो यदि सत्यं न भाषसे ।
गोपेषु चास्य वोत्पत्तिं वद चेन्न कलिर्भवेत् ॥७॥
श्रीनारद उवाच -
श्रुत्वा गोपालवचनं यशोदा भयविह्वला ।
नन्दराजस्तदा प्राह गोपान् क्रोधप्रपूरितान् ॥८॥
श्रीनंद उवाच -
गर्गस्य वाक्यं हे गोपा वदिष्यामि समाहितः ।
येन गोपगणा यूयं भवताशु गतव्यथाः ॥९॥
ककारः कमलाकान्तो ऋकारो राम इत्यपि ।
षकारः षड्गुणपतिः श्वेतद्वीपनिवासकृत् ॥१०॥
णकारो नारसिंहोऽयमकारो ह्यक्षरोऽग्निभुक् ।
विसर्गौ च तथा ह्येतौ नरनारायणावृषी ॥११॥
संप्रलीनाश्च षट् पूर्णा यस्मिञ्छब्दे महात्मनि ।
परिपूर्णतमे साक्षात्तेन कृष्णः प्रकीर्तितः ॥१२॥
श्रीनारदजी कहते हैं - एक समय समस्त गोपों और गोपियोंने
नन्दनन्दनके उस अद्भुत चरित्रको देखकर यशोदासहित नन्द के पास
जाकर कहा ॥ १ ॥
गोप बोले – हे यशोमय गोपराज ! तुम्हारे वंशमें पहले
कभी कोई भी ऐसा बालक नहीं उत्पन्न हुआ था, जो पर्वत उठा लें। तुम स्वयं तो एक शिलाखण्ड
भी सात दिनतक नहीं उठाये रह सकते। कहाँ तो सात वर्षका बालक और कहाँ उसके द्वारा इतने
बड़े गिरिराजको हाथपर उठाये रखना । इससे तुम्हारे इस महाबली पुत्र के
विषय में हमें शङ्का होती है। जैसे गजराज एक कमल उठा ले और जैसे
बालक गोबर- छत्ता हाथ में ले ले, उसी तरह इसने खेल ही खेल में एक हाथ से गिरिराज को
उठा लिया था ।। २-४ ॥
यशोदे ! तुम गोरी हो, और नन्दजी ! तुम भी सुवर्णसदृश
गौरवर्णके हो; किंतु यह श्यामवर्णका उत्पन्न हुआ है। इसका रूप-रंग इस कुलके लोगोंसे
सर्वथा विलक्षण है। यह बालक तो ऐसा है, जैसे श्रत्रियोंके कुलमें उत्पन्न हुआ हो ।
बलभद्रजी भी विलक्षण हैं, किन्तु इनकी विलक्षणता कोई दोषकी बात नहीं है; क्योंकि इनका
जन्म चन्द्रवंशमें हुआ है । यदि तुम सच सच नहीं बताओगे तो हम तुम्हें जातिसे बहिष्कृत
कर देंगे। अथवा यह बताओ कि गोपकुलमें इसकी उत्पत्ति कैसे हुई
? यदि नहीं बताओगे तो हमसे तुम्हारा झगड़ा होगा ।। ५ ७ ॥
श्रीनारदजी कहते हैं—गोपोंकी बात सुनकर यशोदाजी तो
भयसे काँप उठीं, किंतु उस समय क्रोधसे भरे हुए गोपगणोंसे नन्दराज इस प्रकार बोले ॥
८ ॥
श्रीनन्दजीने कहा- गोपगण ! मैं एकाग्रचित्त होकर गर्गजीकी
कही हुई बात तुम्हें बता रहा हूँ, जिससे तुम्हारे मनकी चिन्ता और व्यथा शीघ्र दूर हो
जायगी। पहले 'कृष्ण' शब्दके अक्षरोंका अभिप्राय सुनो – 'ककार' कमलाकान्तका वाचक है;
'ऋकार' रामका बोधक है; 'षकार' श्वेतद्वीपनिवासी षड्विध ऐश्वर्य-गुणोंके स्वामी भगवान्
विष्णुका वाचक है; ' ॥ ९-१० ॥
णकार' साक्षात् नरसिंहस्वरूप है; 'अकार' उस अक्षर पुरुषका
बोधक है, जो अग्नि को भी पी जाता है अन्तमें जो 'विसर्ग' नामक
दो बिन्दु हैं, ये 'नर' और नारायण' ऋषियोंके प्रतीक हैं। ये छहों पूर्ण तत्त्व जिस
परिपूर्णतम परमात्मामें लीन हैं, वही साक्षात् 'कृष्ण' है। इसी अर्थमें इस बालकका नाम
'कृष्ण' कहा गया है ॥ ९-१२ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता पुस्तक कोड 2260 से
🌹🌼💟🥀जयश्रीकृष्ण🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
गोविंद गोविंद गोपाल हरे
जय जय प्रभु दीन दयाल हरे
हे नाथ नारायण वासुदेव