॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
द्वितीय स्कन्ध- सातवाँ अध्याय..(पोस्ट१७)
भगवान् के लीलावतारों की कथा
स श्रेयसामपि विभुर्भगवान् यतोऽस्य ।
भावस्वभावविहितस्य सतः प्रसिद्धिः ।
देहे स्वधातुविगमेऽनुविशीर्यमाणे ।
व्योमेव तत्र पुरुषो न विशीर्यतेऽजः ॥ ४९ ॥
सोऽयं तेऽभिहितस्तात भगवान् विश्वभावनः ।
समासेन हरेर्नान्यद् अन्यस्मात् सदसच्च यत् ॥ ५० ॥
इदं भागवतं नाम यन्मे भगवतोदितम् ।
सङ्ग्रहोऽयं विभूतीनां त्वमेतद् विपुली कुरु ॥ ५१ ॥
यथा हरौ भगवति नृणां भक्तिर्भविष्यति ।
सर्वात्मन्यखिलाधारे इति सङ्कल्प्य वर्णय ॥ ५२ ॥
मायां वर्णयतोऽमुष्य ईश्वरस्यानुमोदतः ।
शृण्वतः श्रद्धया नित्यं माययाऽऽत्मा न मुह्यति ॥ ५३ ॥
समस्त कर्मों के फल भी भगवान् ही देते हैं। क्योंकि मनुष्य अपने स्वभावके अनुसार जो शुभकर्म करता है, वह सब उन्हींकी प्रेरणासे होता है। इस शरीरमें रहनेवाले पञ्चभूतों के अलग-अलग हो जाने पर जब—यह शरीर नष्ट हो जाता है, तब भी इसमें रहनेवाला अजन्मा पुरुष आकाश के समान नष्ट नहीं होता ॥ ४९ ॥ बेटा नारद ! सङ्कल्प से विश्वकी रचना करनेवाले षडैश्वर्यसम्पन्न श्रीहरिका मैंने तुम्हारे सामने संक्षेपसे वर्णन किया। जो कुछ कार्य-कारण अथवा भाव-अभाव है, वह सब भगवान् से भिन्न नहीं है। फिर भी भगवान् तो इससे पृथक भी हैं ही ॥ ५० ॥ भगवान् ने मुझे जो उपदेश किया था, वह यही ‘भागवत’ है। इसमें भगवान् की विभूतियोंका संक्षिप्त वर्णन है। तुम इसका विस्तार करो ॥ ५१ ॥
जिस प्रकार सबके आश्रय और सर्वस्वरूप भगवान् श्रीहरि में लोगों की प्रेममयी भक्ति हो, ऐसा निश्चय करके इसका वर्णन करो ॥ ५२ ॥ जो पुरुष भगवान्की अचिन्त्य शक्ति मायाका वर्णन या दूसरेके द्वारा किये हुए वर्णनका अनुमोदन करते हैं अथवा श्रद्धाके साथ नित्य श्रवण करते हैं, उनका चित्त मायासे कभी मोहित नहीं होता ॥ ५३ ॥
हरिः ॐ तत्सत् श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
इति श्रीमद्भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां
द्वितीयस्कंधे सप्तमोऽध्यायः ॥ ७ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌹💖🥀🌹जय श्रीहरि:🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण नारायण नारायण नारायण