गुरुवार, 5 सितंबर 2024

श्रीगर्ग-संहिता (गिरिराज खण्ड) चौथा अध्याय (पोस्ट 02)

 

 

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

(गिरिराज खण्ड)

चौथा अध्याय (पोस्ट 02)

 

इन्द्र द्वारा भगवान् श्रीकृष्णकी स्तुति तथा सुरभि और ऐरावत द्वारा उनका अभिषेक

 

कृष्णाभिषेके संजाते गिरिर्गोवर्धनो महान् ।
द्रवीभूतोऽवहद्‌राजन् हर्षानन्दादितस्ततः ॥११॥
प्रसन्नो भगवांस्तस्मिन्कृतवान्हस्तपंकजम् ।
तद्धस्तचिह्नमद्यापि दृश्यते तद्‌गिरौ नृप ॥१२॥
तत्तीर्थं च परं भूतं नराणां पापनाशनम् ।
तदेव पादचिह्नं स्यात्तत्तीर्थं विद्धि मैथिल ॥१३॥
एतावत्तस्य तत्रैव पादचिह्नं बभूव ह ।
सुरभेः पादचिह्नानि बभूवुस्तत्र मैथिल ॥१४॥
द्युगङ्गाजलपातेन कृष्णस्नानेन मैथिल ।
तत्र वै मानसी गङ्गा गिरौ जाताऽघनाशिनी ॥१५॥
सुरभेर्दुग्धधाराभिर्गोविन्दस्नानतो नृप ।
जातो गोविन्दकुण्डोऽद्रौ महापापहरः परः ॥१६॥
कदाचित्तस्मिन्दुग्धस्य स्वादुत्वं प्रतिपद्यते ।
तत्र स्नात्वा नरः साक्षाद्‌‌गोविन्दपदमाप्नुयात् ॥१७॥
प्रदक्षिणीकृत्य हरिं प्रणम्य वै
दत्त्वा बलींस्तत्र पुरन्दरादयः ।
जयध्वनिं कृत्य सुपुष्पवर्षिणो
ययुः सुराः सौख्ययुतास्त्रिविष्टपम् ॥१८॥
कृष्णाभिषेकस्य कथां शृणोति यो
दशाश्वमेधावभृथाधिकं फलम् ।
प्राप्नोति राजेन्द्र स एव भूयसः
परं पदं याति परस्य वेधसः ॥१९॥

राजन् ! श्रीकृष्णका अभिषेक सम्पन्न हो जानेपर वह महान् पर्वत गोवर्धन हर्ष एवं आनन्दसे द्रवीभूत होकर सब ओर बहने लगा। तब भगवान्‌ने प्रसन्न होकर उसके ऊपर अपना हस्तकमल रखा । नरेश्वर ! उस पर्वतपर भगवान्‌के हाथका वह चिह्न आज भी दृष्टिगोचर होता है। वह परम पवित्र तीर्थ हो गया, जो मनुष्योंके पापोंका नाश करनेवाला है। वहीं चरणचिह्न भी है। मैथिल ! उसे भी परम तीर्थ समझो। जहाँ हस्तचिह्न है, वहीं उतना ही बड़ा चरणचिह्न भी हुआ। मैथिल ! उसी स्थानपर सुरभि देवीके चरणचिह्न भी बन गये। मिथिलेश्वर ! श्रीकृष्णके स्नानके निमित्त जो आकाशगङ्गाका जल गिरा, उससे वहीं 'मानसी गङ्गा' प्रकट हो गयीं, जो सम्पूर्ण पापोंका नाश करनेवाली हैं। नरेश्वर । सुरभिकी दुग्ध-धाराओंसे गोविन्दने जो स्नान किया, उससे उस पर्वतपर 'गोविन्दकुण्ड प्रकट हो गया, जो बड़े-बड़े पापोंको हर लेनेवाला परमपावन तीर्थ है ॥ ११-१६

कभी-कभी उस तीर्थके जलमें दूधका-सा स्वाद प्रकट होता है । उसमें स्नान करके मनुष्य साक्षात् गोविन्दके धामको प्राप्त होता है ॥ १

इस प्रकार वहाँ श्रीहरि की परिक्रमा करके, उन्हें प्रणामपूर्वक बलि (पूजोपहार) समर्पित करने के पश्चात् इन्द्र आदि देवता जय-जयकारपूर्वक पुष्प बरसाते हुए बड़े सुखसे स्वर्गलोकको लौट गये। राजेन्द्र ! जो श्रीकृष्णाभिषेक की इस कथा को सुनता है, वह दस अश्वमेध यज्ञों के अवभृथ स्नानसे अधिक पुण्य- फलको पाता है । फिर वह परम-विधाता परमेश्वर श्रीकृष्णके परमपदको प्राप्त होता है ।। १ - १९॥

 

इस प्रकार श्रीगर्गसंहितामें श्रीगिरिराजखण्डके अन्तर्गत श्रीनारद - बहुलाश्व-संवादमें 'श्रीकृष्णका अभिषेक' नामक चौथा अध्याय पूरा हुआ ॥ ४ ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से

 



1 टिप्पणी:

  1. 🌹💖🥀🌹जय श्रीकृष्ण🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    जय गिरिराज धरण गोवर्धन
    गिरधारी महाराज 🙏🌷🙏
    जय श्री राधे कृष्ण

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