बुधवार, 4 सितंबर 2024

श्रीगर्ग-संहिता (गिरिराज खण्ड) चौथा अध्याय (पोस्ट 01)


 

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

(गिरिराज खण्ड)

चौथा अध्याय (पोस्ट 01)

 

इन्द्र द्वारा भगवान् श्रीकृष्णकी स्तुति तथा सुरभि और ऐरावत द्वारा उनका अभिषेक

 

श्रीनारद उवाच -
अथ देवगणैः सार्द्धं शक्रस्तत्र समागतः ।
गतमानो गिरौ कृष्णं रहसि प्रणनाम ह ॥१॥


इन्द्र उवाच -
त्वं देवदेवः परमेश्वरः प्रभुः
पूर्णः पुराणः पुरुषोत्तमोत्तमः ।
परात्परस्त्वं प्रकृतेः परो हरि-
र्मां पाहि पाहि द्युपते जगत्पते ॥२॥
दशावतारो भगवांस्त्वमेव
रिरक्षया धर्मगवां श्रुतेश्च ।
अद्यैव जातः परिपूर्णदेवः
कंसादि दैत्येन्द्रविनाशनाय ॥३॥
त्वन्मायया मोहितचित्तवृत्तिं
मदोद्धतं हेलनभाजनं माम् ।
पितेव पुत्रं द्युपते क्षमस्व
प्रसीद देवेश जगन्निवास ॥४॥
ॐनमो गोवर्धनोद्धरणाय गोविन्दाय गोकुलनिवासाय
गोपालाय गोपालपतये गोपीजनभर्त्रे गिरिगजोद्धर्त्रे
करुणानिधये जगद्विधये जगन्मङ्गलाय जगन्निवासाय
जगन्मोहनाय कोटिमन्मथमन्मथाय वृषभानुसुतावराय
श्रीनन्दराजकुलप्रदीपाय श्रीकृष्णाय परिपूर्णतमाय
तेऽसंख्यब्रह्माण्डपतये गोलोकधामधिषणाधिपतये
स्वयम्भगवते सबलाय नमस्ते नमस्ते ॥५॥


श्रीनारद उवाच -
इति शक्रकृतं स्तोत्रं प्रातरुत्थाय यः पठेत् ।
सर्वा सिद्धिर्भवेत्तस्य संकटान्न भयं भवेत् ॥६॥
इतिस्तुत्वा हरिं देवं सर्वैर्देवगणैः सह ।
कृताञ्जलिपुटो भूत्वा प्रणनाम पुरन्दरः ॥७॥
अथ गोवर्धने रम्ये सुरभिर्गौः समुद्रजा ।
स्नापयामास गोपेशं दुग्धधाराभिरात्मनः ॥८॥
शुंडादण्डैश्चतुर्भिश्च द्युगंगाजलपूरितैः ।
श्रीकृष्णं स्नापयामास मत्त ऐरावतो गजः ॥९॥
ऋषिभिः श्रुतिभिः सर्वैर्देवगन्धर्वकिन्नराः ।
तुष्टुवुस्ते हरिं राजन् हर्षिताः पुष्पवर्षिणः ॥१०॥

श्रीनारदजी कहते हैं- राजन् ! तदनन्तर गर्व गल जानेके कारण देवराज इन्द्र देवताओंके साथ उस पर्वतपर आये और एकान्तमें श्रीकृष्णको प्रणाम करके उनसे बोले ॥ १ ॥

इन्द्र ने कहा- आप देवताओंके भी देवता, सर्वसमर्थ, पूर्ण परमेश्वर, पुराण पुरुष, पुरुषोत्तमोत्तम प्रकृतिसे परे तथा परात्पर श्रीहरि हैं। स्वर्गके स्वामी जगत्पते ! मेरी रक्षा कीजिये, रक्षा कीजिये । धर्म, गौ तथा वेद की रक्षा करनेके लिये दस अवतार धारण करने वाले भगवान् आप ही हैं। इस समय भी आप परिपूर्णतम देवता कंसादि दैत्यराजों के विनाश के लिये ही अवतीर्ण हुए हैं ॥ २-३

आपकी मायासे जिसकी चित्तवृत्ति मोहित है, जो मदसे उन्मत्त और अवहेलनाका पात्र है, वही मैं आपका अपराधी इन्द्र हूँ । द्युपते ! जैसे पिता पुत्रके अपराधको क्षमा कर देता है, उसी प्रकार आप मुझ अपराधीको क्षमा करें। देवेश्वर ! जगन्निवास ! मुझपर प्रसन्न होइये । गोवर्धनको उठानेवाले आप गोविन्दको नमस्कार है । गोकुलनिवासी गोपालको नमस्कार है। गोपालोंके पति, गोपीजनोंके भर्ता और गिरिराजके उद्धर्ताको नमस्कार है। करुणाकी निधि तथा जगत् के विधाता, विश्वमङ्गलकारी तथा जगत् के निवासस्थान आप परमात्माको प्रणाम है। जो विश्व- मोहन तथा करोड़ों कामदेवोंके भी मनको मथ देनेवाले हैं, उन वृषभानुनन्दिनीके स्वामी नन्दराजकुलदीपक परिपूर्णतम भगवान् श्रीकृष्णको नमस्कार है। असंख्य ब्रह्माण्डोंके पति, गोलोकधामके अधिपति एवं बलरामके साथ रहनेवाले आप साक्षात् भगवान् श्रीकृष्णको बारंबार नमस्कार है, नमस्कार है ।। --५ ॥

श्रीनारदजी कहते हैं— इन्द्रद्वारा किये गये इस स्तोत्रका जो प्रातः काल उठकर पाठ करेगा, उसे सब प्रकारकी सिद्धियाँ सुलभ होंगी और उसे किसी संकटसे भय नहीं होगा। इस प्रकार भगवान् श्रीहरिकी स्तुति करके देवराज इन्द्रने हाथ जोड़कर समस्त देवताओंके साथ उन्हें प्रणाम किया। इसके बाद क्षीरसागरसे उत्पन्न हुई सुरभि गौ ने उस सुरम्य गोवर्धन पर्वतपर आकर अपनी दुग्धधारासे गोपेश्वर श्रीकृष्णको स्नान कराया। फिर मत्त गजराज ऐरावतने गङ्गाजलसे भरी हुई चार सूँड़ोंद्वारा भगवान् श्रीकृष्णका अभिषेक किया। राजन् ! फिर हर्षोल्लास से भरे हुए सम्पूर्ण देवता, गन्धर्व और किंनर ऋषियोंको साथ ले वेद-मन्त्रोंके उच्चारणपूर्वक पुष्पवर्षा करते हुए श्रीहरिकी स्तुति करने लगे । ६ – १० ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से

 



2 टिप्‍पणियां:

  1. 🪷🌹🥀🪷जय श्रीहरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ कृष्णाय वासुदेवाय
    हरये परमात्मने
    प्रणत क्लेश नाशाय
    गोविंदाय नमो नमः

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