सोमवार, 23 सितंबर 2024

श्रीगर्ग-संहिता (गिरिराज खण्ड) ग्यारहवाँ अध्याय (पोस्ट 02)


 

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

(गिरिराज खण्ड)

ग्यारहवाँ अध्याय (पोस्ट 02)

 

सिद्ध के द्वारा अपने पूर्वजन्म के वृत्तान्त का वर्णन तथा गोलोक से उतरे हुए विशाल रथपर आरूढ़ हो उसका श्रीकृष्ण-लोक में गमन

 

श्रीनारद उवाच -
एवं प्रवदतस्तस्य गोलोकाच्च महारथः ॥१९॥
सहस्रादित्यसंकाशो हयायुतसमन्वितः ॥२०॥
सहस्रचक्रध्वनिभृल्लक्षपार्षदमण्डितः ।
मंजीरकिंकिणीजालो मनोहरतरो नृप ॥२१॥
पश्यतस्तस्य विप्रस्य तमानेतुं समागतः ।
तमागतं रथं दिव्यं नेमतुर्विप्रनिर्जरौ ॥२२॥
ततः समारुह्य रथं स सिद्धो
विरंजयन्मैथिल मण्डलं दिशाम् ।
श्रीकृष्णलोकं प्रययौ परात्परं
निकुंजलीलाललितं मनोहरम् ॥२३॥
विप्रोऽपि तस्मात् पुनरागतो गिरिं
गोवर्धनं सर्वगिरिन्द्रदैवतम् ।
प्रदक्षिणीकृत्य पुनः प्रणम्य तं
ययौ गृहं मैथिल तत्प्रभावित् ॥२४॥
इदं मया ते कथितं प्रचण्डं
सुमुक्तिदं श्रीगिरिराजखण्डम् ।
श्रुत्वा जनः पाप्यपि न प्रचण्डं
स्वप्नेऽपि पश्येद्यममुग्रदण्डम् ॥२५॥
यः शृणोतिगिरिराज यशस्यं
गोपराज नवकेलिरहस्यम् ।
देवराज इव सोऽत्र समेति
नन्दराज इव शान्तिममुत्र ॥२६॥
                            

श्रीनारदजी कहते हैं— राजन् ! वह इस प्रकार कह ही रहा था कि गोलोकसे एक विशाल रथ उतरा । वह सहस्रों सूर्योंके समान तेजस्वी था और उसमें दस हजार घोड़े जुते हुए थे। नरेश्वर ! उससे हजारों पहियोंके चलनेकी ध्वनि होती थी । लाखों पार्षद उसकी शोभा बढ़ा रहे थे । मञ्जीर और क्षुद्र घण्टिकाओंके समूहसे आच्छादित वह रथ अत्यन्त मनोहर दिखायी देता था ।। १९ - २

ब्राह्मणके देखते-देखते उस सिद्धको लेनेके लिये जब वह रथ आया, तब ब्राह्मण और सिद्ध दोनोंने उस दिव्य रथको नमस्कार किया । मिथिलेश्वर ! तदनन्तर वढ़ सिद्ध उस रथपर आरूढ़ हो दिङ्मण्डलको प्रकाशित करता हुआ परात्पर श्रीकृष्ण-लोकमें पहुँच गया, जो निकुञ्ज लीलाके कारण ललित एवं परम मनोहर है। मैथिल ! वह ब्राह्मण भी गोवर्द्धनका प्रभाव जान गया था, इसलिये वहाँसे लौटकर समस्त गिरिराजोंके देवता गोवर्द्धन गिरिपर आया और उसकी परिक्रमा एवं उसे प्रणाम करके अपने घरको गया ।। २२ - २४ ॥

राजन् ! इस प्रकार मैंने यह विचित्र एवं उत्तम मोक्षदायक श्रीगिरिराजखण्ड तुम्हें कह सुनाया । पापी मनुष्य भी इसका श्रवण करके स्वप्न में भी कभी उग्रदण्डधारी प्रचण्ड यमराज का दर्शन नहीं करता । जो मनुष्य गिरिराज के यशसे परिपूर्ण गोपराज श्रीकृष्णकी नूतन केलिके रहस्यको सुनता है, वह देवराज इन्द्रकी भाँति इस लोकमें सुख भोगता है और नन्दराज के समान परलोक में शान्ति का अनुभव करता है ।। २५-२६ ॥

 

इस प्रकार श्रीगर्गसंहितामें श्रीगिरिराजखण्डके अन्तर्गत श्रीनारद- बहुलाश्व-संवादमें श्रीगिरिराज-प्रभाव प्रस्ताव-वर्णनके प्रसङ्गमें 'सिद्धमोक्ष' नामक ग्यारहवाँ अध्याय पूरा हुआ ॥ ११ ॥

 

श्रीगिरिराजखण्ड सम्पूर्ण ॥ ३ ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से



1 टिप्पणी:

  1. 💐💐💐💐जय श्रीकृष्ण🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    गोविंद बोलो हरि गोपाल बोलो
    राधा रमण हरि गोविंद बोलो
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    जय श्री राधे गोविन्द

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