॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
द्वितीय स्कन्ध- दसवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)
भागवत के दस लक्षण
अवतारानुचरितं हरेश्चास्यानुवर्तिनाम् ।
पुंसां ईशकथाः प्रोक्ता नानाख्यान उपबृंहिताः ॥ ५ ॥
निरोधोऽस्यानुशयनं आत्मनः सह शक्तिभिः ।
मुक्तिः हित्वान्यथा रूपं स्वरूपेण व्यवस्थितिः ॥ ॥ ६ ॥
आभासश्च निरोधश्च यतश्चाध्यवसीयते ।
स आश्रयः परं ब्रह्म परमात्मेति शब्द्यते ॥ ७ ॥
योऽध्यात्मिकोऽयं पुरुषः सोऽसौ एवाधिदैविकः ।
यः तत्र उभय विच्छेदः स स्मृतोह्याधिभौतिकः ॥ ८ ॥
एकं एकतराभावे यदा न उपलभामहे ।
त्रितयं तत्र यो वेद स आत्मा स्वाश्रयाश्रयः ॥ ९ ॥
भगवान् के विभिन्न अवतारों के और उनके प्रेमी भक्तोंकी विविध आख्यानों से युक्त गाथाएँ ‘ईशकथा’ हैं ॥ ५ ॥ जब भगवान् योगनिद्रा स्वीकार करके शयन करते हैं, तब इस जीवका अपनी उपाधियों के साथ उनमें लीन हो जाना ‘निरोध’ है। अज्ञानकल्पित कर्तृत्व, भोक्तृत्व आदि अनात्मभाव का परित्याग करके अपने वास्तविक स्वरूप परमात्मामें स्थित होना ही ‘मुक्ति’ है ॥ ६ ॥ परीक्षित् ! इस चराचर जगत् की उत्पत्ति और प्रलय जिस तत्त्वसे प्रकाशित होते हैं, वह परम ब्रह्म ही ‘आश्रय’ है। शास्त्रोंमें उसी को परमात्मा कहा गया है ॥ ७ ॥ जो नेत्र आदि इन्द्रियों का अभिमानी द्रष्टा जीव है, वही इन्द्रियों के अधिष्ठातृ-देवता सूर्य आदि के रूप में भी है और जो नेत्र गोलक आदि से युक्त दृश्य देह है, वही उन दोनों को अलग-अलग करता है ॥ ८ ॥ इन तीनोंमें यदि एक का भी अभाव हो जाय तो दूसरे दो की उपलब्धि नहीं हो सकती। अत: जो इन तीनोंको जानता है, वह परमात्मा ही, सबका अधिष्ठान ‘आश्रय’ तत्त्व है। उसका आश्रय वह स्वयं ही है, दूसरा कोई नहीं ॥ ९ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।
जवाब देंहटाएंहरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।
💐🌿🌷💐जय श्री हरि:🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव
नारायण नारायण नारायण नारायण