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श्रीहरि: #
श्रीगर्ग-संहिता
(गिरिराज खण्ड)
सातवाँ अध्याय (पोस्ट 03)
गिरिराज गोवर्धनसम्बन्धी तीर्थोंका वर्णन
कदम्बखण्डतीर्थं च लीलायुक्तं हरेः
सदा ।
तस्य दर्शनमात्रेण नरो नारायणो भवेत् ॥२६॥
यत्र वै राधया रासे शृङ्गारोऽकारि मैथिल ।
तत्र गोवर्धने जातं स्थले शृङ्गारमण्डलम् ॥२७॥
येन रूपेण कृष्णेन धृतो गोवर्धनो गिरिः ।
तद्रूपं विद्यते तत्र नृप शृङ्गारमण्डलम् ॥२८॥
अब्दाश्चतुःसहस्राणि तथा चाष्टौ शतानि च ।
गतास्तत्र कलेरादौ क्षेत्रे शृङ्गारमण्डले ॥२९॥
गिरिराजगुहामध्यात्सर्वेषां पश्यतां नृप ।
स्वतः सिद्धं च तद्रूपं हरेः प्रादुर्भविष्यति ॥३०॥
श्रीनाथं देवदमनं तं वदिष्यन्ति सज्जनाः ।
गोवर्धने गिरौ राजन् सदा लीलां करोति यः ॥३१॥
ये करिष्यन्ति नेत्राभ्यां तस्य रूपस्य दर्शनम् ।
ते कृतार्था भविष्यन्ति मैथिलेन्द्र कलौ जनाः ॥३२॥
जगन्नाथो रंगनाथो द्वारकानाथ एव च ।
बद्रीनाथश्चतुष्कोणे भारतस्यापि पर्वते ॥३३॥
मध्ये गोवर्धनस्यापि नाथोऽयं वर्तते नृप ।
पवित्रे भारते वर्षे पंच नाथाः सुरेश्वराः ॥३४॥
सद्धर्ममण्डपस्तम्बा आर्तत्राणपरायणाः ।
तेषां तु दर्शनं कृत्वा नरो नारायणो भवेत् ॥३५॥
चतुर्णां भुवि नाथानां कृत्वा यात्रां नरः सुधीः ।
न पश्येद्देवदमनं स न यात्राफलं लभेत् ॥३६॥
श्रीनाथं देवदमनं पश्येद्गोवर्धने गिरौ ।
चतुर्णां भुवि नाथानां यात्रायाः फलमाप्नुयात् ॥३७॥
ऐरावतस्य सुरभेः पादचिह्नानि यत्र वै ।
तत्र नत्वा नरः पापी वैकुण्ठं याति मैथिल ॥३८॥
हस्तचिह्नं पादचिह्नं श्रीकृष्णस्य महात्मनः ।
दृष्ट्वा नत्वा नरः कश्चित्साक्षात्कृष्णपदं व्रजेत् ॥३९॥
एतानि नृप तीर्थानि कुंडाद्यायतनानि च ।
अंगानि गिरिराजस्य किं भूयः श्रोतुमिच्छसि ॥४०॥
श्रीहरिकी लीलासे युक्त जो 'कदम्बखण्ड' नामक तीर्थ
है, वहाँ सदा ही श्रीकृष्ण लीलारत रहते हैं। इस तीर्थका दर्शन करने मात्र से नर नारायण हो जाता है। मैथिल ! जहाँ गोवर्धनपर रास में श्रीराधा ने शृङ्गार धारण किया था, वह स्थान
'शृङ्गारमण्डल' के नाम से प्रसिद्ध हुआ । नरेश्वर ! श्रीकृष्णने
जिस रूप से गोवर्धन पर्वत को धारण किया
था, उनका वही रूप शृङ्गारमण्डल – तीर्थ में विद्यमान है ॥ २६-२८ ॥
जब कलियुग के चार हजार आठ सौ
वर्ष बीत जायँगे, तब शृङ्गारमण्डल क्षेत्र में गिरिराज की गुफा के मध्यभाग से
सब के देखते-देखते श्रीहरिका स्वतः सिद्ध रूप प्रकट होगा ॥ २९-३० ॥
नरेश्वर । देवताओं का अभिमान
चूर्ण करनेवाले उस स्वरूपको सज्जन पुरुष 'श्रीनाथजी' के नाम से
पुकारेंगे। राजन् ! गोवर्धन पर्वतपर श्रीनाथजी सदा ही लीला करते हैं। मैथिलेन्द्र
! कलियुग में जो लोग अपने नेत्रों से श्रीनाथजी के रूप का दर्शन करेंगे, वे कृतार्थ हो जायँगे
॥ ३१–३२ ॥
[भगवान् श्रीनाथजी] भारत के चारों कोनों में क्रमशः जगन्नाथ, श्रीरङ्गनाथ, श्रीद्वारकानाथ और श्रीबद्रीनाथके
नामसे प्रसिद्ध हैं। नरेश्वर ! भारतके मध्यभागमें भी वे गोवर्धननाथके नामसे विद्यमान
हैं। इस प्रकार पवित्र भारतवर्षमें ये पाँचों नाथ देवताओंके भी स्वामी हैं। वे पाँचों
नाथ सद्धर्मरूपी मण्डपके पाँच खंभे हैं और सदा आर्तजनोंकी रक्षामें तत्पर रहते हैं।
उन सबका दर्शन करके नर नारायण हो जाता है ॥ ३३-३५ ॥
जो विद्वान् पुरुष इस भूतलपर चारों नाथोंकी यात्रा
करके मध्यवर्ती देवदमन श्रीगोवर्धननाथका दर्शन नहीं करता, उसे यात्राका फल नहीं मिलता।
जो गोवर्धन पर्वतपर देवदमन श्रीनाथका दर्शन कर लेता है, उसे पृथ्वीपर चारों नाथोंकी
यात्राका फल प्राप्त हो जाता है । ३६ - ३७ ॥
मैथिल ! जहाँ ऐरावत हाथी और सुरभि गौके चरणोंके चिह्न
हैं, वहाँ नमस्कार करके पापी मनुष्य भी वैकुण्ठधाम में चला जाता
है। जो कोई भी मनुष्य महात्मा श्रीकृष्णके हस्तचिह्नका और चरणचिह्नका दर्शन कर लेता
है, वह साक्षात् श्रीकृष्णके धाममें जाता है। नरेश्वर ! ये तीर्थ, कुण्ड और मन्दिर
गिरिराजके अङ्गभूत हैं; उनको बता दिया, अब और क्या सुनना चाहते हो । ३८-४० ।।
इस प्रकार श्रीगर्ग संहितामें श्रीगिरिराजखण्डके
अन्तर्गत श्रीनारद-बहुलाश्व-संवादमें 'श्रीगिरिराजके तीर्थोका वर्णन' नामक सातवाँ अध्याय
पूरा हुआ ॥ ७ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता पुस्तक कोड 2260 से
🌺💐💐🌺जय श्रीहरि:🙏🙏
जवाब देंहटाएं।। ॐ नमो नारायण ।।
ॐ श्री परमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव
जय हो मेरे श्री नाथजी !!महाराज