शनिवार, 14 सितंबर 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण द्वितीय स्कन्ध-नवां अध्याय..(पोस्ट०३)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
द्वितीय स्कन्ध- नवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)

ब्रह्माजी का भगवद्धामदर्शन और भगवान्‌ 
के द्वारा उन्हें चतु:श्लोकी भागवतका उपदेश

दिव्यं सहस्राब्दममोघदर्शनो
    जितानिलात्मा विजितोभयेन्द्रियः ।
अतप्यत स्माखिललोकतापनं
    तपस्तपीयांस्तपतां समाहितः ॥ ८ ॥
तस्मै स्वलोकं भगवान् सभाजितः
    सन्दर्शयामास परं न यत्परम् ।
व्यपेतसङ्क्लेशविमोहसाध्वसं
    स्वदृष्टवद्‌भिः विबुधैरभिष्टुतम् ॥ ९ ॥
प्रवर्तते यत्र रजस्तमस्तयोः
    सत्त्वं च मिश्रं न च कालविक्रमः ।
न यत्र माया किमुतापरे हरेः
    अनुव्रता यत्र सुरासुरार्चिताः ॥ १० ॥
श्यामावदाताः शतपत्रलोचनाः
    पिशङ्गवस्त्राः सुरुचः सुपेशसः ।
सर्वे चतुर्बाहव उन्मिषन्मणि
    प्रवेकनिष्काभरणाः सुवर्चसः ।
प्रवालवैदूर्यमृणालवर्चसः
    परिस्फुरत्कुण्डल मौलिमालिनः ॥ ११ ॥
भ्राजिष्णुभिर्यः परितो विराजते
    लसद्विमानावलिभिर्महात्मनाम् ।
विद्योतमानः प्रमदोत्तमाद्युभिः
    सविद्युदभ्रावलिभिर्यथा नभः ॥ १२ ॥

ब्रह्माजी तपस्वियोंमें सबसे बड़े तपस्वी हैं। उनका ज्ञान अमोघ है। उन्होंने उस समय एक सहस्र दिव्य वर्षपर्यन्त एकाग्र चित्तसे अपने प्राण, मन, कर्मेन्द्रिय और ज्ञानेन्द्रियोंको वशमें करके ऐसी तपस्या की, जिससे वे समस्त लोकों को प्रकाशित करनेमें समर्थ हो सके ॥ ८ ॥ उनकी तपस्यासे प्रसन्न होकर भगवान्‌ ने उन्हें अपना वह लोक दिखाया, जो सबसे श्रेष्ठ है और जिससे परे कोई दूसरा लोक नहीं है। उस लोकमें किसी भी प्रकारके क्लेश, मोह और भय नहीं हैं। जिन्हें कभी एक बार भी उसके दर्शनका सौभाग्य प्राप्त हुआ है, वे देवता बार-बार उसकी स्तुति करते रहते हैं ॥ ९ ॥ वहाँ रजोगुण, तमोगुण और इनसे मिला हुआ सत्त्वगुण भी नहीं है। वहाँ न काल की दाल गलती है और न माया ही कदम रख सकती है; फिर माया के बाल-बच्चे तो जा ही कैसे सकते हैं। वहाँ भगवान्‌ के वे पार्षद निवास करते हैं, जिनका पूजन देवता और दैत्य दोनों ही करते हैं ॥ १० ॥ उनका उज्ज्वल आभा से युक्त श्याम शरीर, शतदल कमल के समान कोमल नेत्र और पीले रंगके वस्त्रसे शोभायमान है। अङ्ग-अङ्गसे राशि-राशि सौन्दर्य बिखरता रहता है। वे कोमलता की मूर्ति हैं। सभी के चार-चार भुजाएँ हैं। वे स्वयं तो अत्यन्त तेजस्वी हैं ही, मणिजटित सुवर्ण के प्रभामय आभूषण भी धारण किये रहते हैं। उनकी छवि मूँगे, वैदूर्यमणि और कमल के उज्ज्वल तन्तु के समान है। उनके कानों में कुण्डल, मस्तकपर मुकुट और कण्ठ में मालाएँ शोभाय- मान हैं ॥ ११ ॥ जिस प्रकार आकाश बिजली सहित बादलों से शोभायमान होता है, वैसे ही वह लोक मनोहर कामिनियों की कान्ति से युक्त महात्माओं के दिव्य तेजोमय विमानों से स्थान-स्थानपर सुशोभित होता रहता है ॥ १२ ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌺💖🌹🥀जय श्रीहरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नील सरोरुह श्याम तरुन अरुण वारिज नयन 🌸
    करहु मम उर धाम सदा क्षीर सागर शयन 🌼
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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