गुरुवार, 26 सितंबर 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण द्वितीय स्कन्ध-दसवां अध्याय..(पोस्ट०५)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
द्वितीय स्कन्ध- दसवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)

भागवत के दस लक्षण

यदाऽऽत्मनि निरालोकं आत्मानं च दिदृक्षतः ।
निर्भिन्ने ह्यक्षिणी तस्य ज्योतिः चक्षुः गुणग्रहः ॥ २१ ॥
बोध्यमानस्य ऋषिभिः आत्मनः तत् जिघृक्षतः ।
कर्णौ च निरभिद्येतां दिशः श्रोत्रं गुणग्रहः ॥ २२ ॥
वस्तुनो मृदुकाठिन्य लघुगुर्वोष्ण शीतताम् ।
जिघृक्षतः त्वङ् निर्भिन्ना तस्यां रोम महीरुहाः ।
तत्र चान्तर्बहिर्वातः त्वचा लब्धगुणो वृतः ॥ २३ ॥
हस्तौ रुरुहतुः तस्य नाना कर्म चिकीर्षया ।
तयोस्तु बलमिन्द्रश्च आदानं उभयाश्रयम् ॥ २४ ॥

पहले उनके (विराट् पुरुष के ) शरीर में प्रकाश नहीं था; फिर जब उन्हें अपनेको तथा दूसरी वस्तुओंको देखनेकी इच्छा हुई, तब नेत्रोंके छिद्र, उनका अधिष्ठाता सूर्य और नेत्रेन्द्रिय प्रकट हो गये। इन्हींसे रूपका ग्रहण होने लगा ॥ २१ ॥ 
जब वेदरूप ऋषि विराट् पुरुष को स्तुतियों के द्वारा जगाने लगे, तब उन्हें सुननेकी इच्छा हुई। उसी समय कान, उनकी अधिष्ठातृ-देवता दिशाएँ और श्रोत्रेन्द्रिय प्रकट हुई। इसीसे शब्द सुनायी पड़ता है ॥ २२ ॥ जब उन्होंने वस्तुओं की कोमलता, कठिनता, हलकापन, भारीपन, उष्णता और शीतलता आदि जाननी चाही तब उनके शरीरमें चर्म प्रकट हुआ। पृथ्वी में से जैसे वृक्ष निकल आते हैं, उसी प्रकार उस चर्ममें रोएँ पैदा हुए और उसके भीतर-बाहर रहनेवाला वायु भी प्रकट हो गया। स्पर्श ग्रहण करनेवाली त्वचा-इन्द्रिय भी साथ-ही-साथ शरीरमें चारों ओर लिपट गयी और उससे उन्हें स्पर्शका अनुभव होने लगा ॥ २३ ॥ जब उन्हें अनेकों प्रकार के कर्म करनेकी इच्छा हुई, तब उनके हाथ उग आये। उन हाथों में ग्रहण करने की शक्ति हस्तेन्द्रिय तथा उनके अधिदेवता इन्द्र प्रकट हुए और दोनों के आश्रय से होने वाला ग्रहणरूप कर्म भी प्रकट हो गया ॥२४॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌹💖🥀🚩ॐ श्रीपरमात्मने नमः🙏🙏 ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🙏नारायण नारायण नारायण नारायण
    श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव
    🌺🍂🌹जय श्री हरि: 🙏🙏

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