॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
द्वितीय स्कन्ध- दसवाँ अध्याय..(पोस्ट०८)
भागवत के दस लक्षण
अमुनी भगवद् रूपे मया ते ह्यनुवर्णिते ।
उभे अपि न गृह्णन्ति मायासृष्टे विपश्चितः ॥ ३५ ॥
स वाच्य वाचकतया भगवान् ब्रह्मरूपधृक् ।
नामरूपक्रिया धत्ते सकर्माकर्मकः परः ॥ ३६ ॥
प्रजापतीन् मनून् देवान् ऋषीन् पितृगणान् पृथक् ।
सिद्धचारणगन्धर्वान् विद्याध्रासुर गुह्यकान् ॥ ३७ ॥
किन्नराप्सरसो नागान् सर्पान् किम्पुरुषोरगान् ।
मातृरक्षःपिशाचांश्च प्रेतभूतविनायकान् ॥ ३८ ॥
कूष्माण्दोन्माद वेतालान् यातुधानान् ग्रहानपि ।
खगान् मृगान् पशून् वृक्षान् गिरीन् नृप सरीसृपान् ॥ ३९ ॥
द्विविधाश्चतुर्विधा येऽन्ये जल स्थल वनौकसः ।
कुशला-अकुशला मिश्राः कर्मणां गतयस्त्विमाः ॥ ४० ॥
सत्त्वं रजस्तम इति तिस्रः सुर-नृ-नारकाः ।
तत्राप्येकैकशो राजन् भिद्यन्ते गतयस्त्रिधा ।
यद् एकैकतरोऽन्याभ्यां स्वभाव उपहन्यते ॥ ४१ ॥
(श्रीशुकदेवजी कहते हैं) मैंने तुम्हें भगवान् के स्थूल और सूक्ष्म—व्यक्त और अव्यक्त जिन दो रूपों का वर्णन सुनाया है, ये दोनों ही भगवान् की मायाके द्वारा रचित हैं। इसलिये विद्वान् पुरुष इन दोनों को ही स्वीकार नहीं करते ॥ ३५ ॥ वास्तवमें भगवान् निष्क्रिय हैं। अपनी शक्तिसे ही वे सक्रिय बनते हैं। फिर तो वे ब्रह्मा का या विराट् रूप धारण करके वाच्य और वाचक—शब्द और उसके अर्थ के रूपमें प्रकट होते हैं और अनेकों नाम, रूप तथा क्रियाएँ स्वीकार करते हैं ॥ ३६ ॥ परीक्षित् ! प्रजापति, मनु, देवता, ऋषि, पितर, सिद्ध, चारण, गन्धर्व, विद्याधर, असुर, यक्ष, किन्नर, अप्सराएँ, नाग, सर्प, किम्पुरुष, उरग, मातृकाएँ, राक्षस, पिशाच, प्रेत, भूत, विनायक, कूष्माण्ड, उन्माद, वेताल, यातुधान, ग्रह, पक्षी, मृग, पशु, वृक्ष, पर्वत, सरीसृप इत्यादि जितने भी संसारमें नाम-रूप हैं, सब भगवान्के ही हैं ॥ ३७—३९ ॥ संसारमें चर और अचर भेदसे दो प्रकारके तथा जरायुज, अण्डज, स्वेदज और उद्भिज्ज भेदसे चार प्रकारके जितने भी जलचर, थलचर तथा आकाशचारी प्राणी हैं, सब-के-सब शुभ-अशुभ और मिश्रित कर्मोंके तदनुरूप फल हैं ॥ ४० ॥ सत्त्व की प्रधानता से देवता, रजोगुण की प्रधानता से मनुष्य और तमोगुण की प्रधानता से नारकीय योनियाँ मिलती हैं। इन गुणोंमें भी जब एक गुण दूसरे दो गुणोंसे अभिभूत हो जाता है, तब प्रत्येक गतिके तीन-तीन भेद और हो जाते हैं ॥ ४१ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌹💖🌹ॐश्री परमात्मने नमः
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायण हरि नारायण श्रीमन्न
नारायण मेरे नारायण !!🙏🙏
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव