सोमवार, 7 अक्तूबर 2024

श्रीगर्ग-संहिता (माधुर्यखण्ड) आठवाँ अध्याय (पोस्ट 02)

# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

(माधुर्यखण्ड)

आठवाँ अध्याय (पोस्ट 02)

 

यज्ञसीतास्वरूपा गोपियों के पूछने पर श्रीराधा  का श्रीकृष्णकी प्रसन्नता के लिये एकादशी- व्रत का अनुष्ठान बताना और उसके विधि, नियम और  वर्णन करना

 

संवत्सरद्वादशीनां फलमाप्नोति सोऽपि हि ।
 एकादश्याश्च नियमं शृणुताथ व्रजाङ्गनाः ॥
 भूमिशायी दशभ्यां तु चैकभुक्तो जितेन्द्रियः ॥ १८॥
 एकवारं जलं पीत्वा धौतवस्त्रोऽतिनिर्मलः ।
 ब्राह्मे मुहूर्त उत्थाय चैकादश्यां हरिं नतः ॥१९॥
 अधमं कूपिकास्नानं वाप्यां स्नानं तु मध्यमम् ।
 तडागे चोत्तमं स्नानं नद्याः स्नानं ततः परम् ॥२०॥
 एवं स्नात्वा नरवरः क्रोधलोभविवर्जितः ।
 नालपेत्तद्दिने नीचांस्तथा पाखण्डिनो नरान् ॥२१॥
 मिथ्यावादरतांश्चैव तथा ब्राह्मणनिन्दकान् ।
 अन्यांश्चैव दुराचारानगम्यागमने रतान् ॥२२॥
 परद्रव्यापहारांश्च परदाराभिगामिनः ।
 दुर्वृत्तान् भिन्नमर्यादान्नालपीत्स व्रती नरः ॥२३॥
 केशवं पूजयित्वा तु नैवेद्यं तत्र कारयेत् ।
 दीपं दद्याद्गृहे तत्र भक्तियुक्तेन चेतसा ॥२४॥
 कथाः श्रुत्वा ब्राह्मणेभ्यो दद्यात्सद्दक्षिणां पुनः ।
 रात्रौ जागरणं कुर्याद्गायन् कृष्णपदानि च ॥२५॥
 कांस्यं मांसं मसूरांश्च कोद्रवं चणकं तथा ।
 शाकं मधु परान्नं च पुनर्भोजनमैथुनम् ॥२६॥
 विष्णुव्रते च कर्तव्ये दशाभ्यां दश वर्जयेत् ।
 द्यूतं क्रीडां च निद्रां च ताम्बूलं दन्तधावनम् ॥२७॥
 परापवादं पैशुन्यं स्तेयं हिंसां तथा रतिम् ।
 क्रोधाढ्यं ह्यनृतं वाक्यमेकादश्यां विवर्जयेत् ॥२८॥
 कांस्यं मांसं सुरां क्षौद्रं तैलं वितथभाषणम् ।
 पुष्टिषष्टिमसूरांश्च द्वादश्यां परिवर्जयेत् ॥२९॥
 अनीन विधिना कुर्याद्द्वादशीव्रतमुत्तमम् ॥३०॥


 गोप्य ऊचुः -
एकादशीव्रतस्यास्य कालं वद महामते ।
 किं फलं वद तस्यास्तु माहात्म्यं वद तत्त्वतः ॥३१॥


 श्रीराधोवाच –
दशमी पञ्चपञ्चाशद्घटिका चेत्प्रदृश्यते ।
 तर्हि चैकादशी त्याज्या द्वादशीं समुपोषयेत् ॥३२॥
 दशमी पलमात्रेण त्याज्या चैकादशी तिथिः ।
 मदिराबिन्दुपातेन त्याज्यो गङ्गाघटो यथा ॥३३॥
 एकादशी यदा वृद्धिं द्वादशी च यदा गता ।
 तदा परा ह्युपोष्या स्यात्पूर्वा वै द्वादशीव्रते ॥३४॥

व्रजाङ्गनाओ ! अब एकादशी व्रतके नियम सुनो। मनुष्यको चाहिये कि वह दशमीको एक ही समय भोजन करे और रातमें जितेन्द्रिय रहकर भूमिपर शयन करे। जल भी एक ही बार पीये। धुला हुआ वस्त्र पहने और तन- मनसे अत्यन्त निर्मल रहे। फिर ब्राह्म मुहूर्तमें उठकर एकादशीको श्रीहरिके चरणोंमें प्रणाम करे । तदनन्तर शौचादिसे निवृत्त हो स्नान करे। कुएँका स्नान सबसे निम्नकोटिका है, बावड़ीका स्नान मध्यमकोटिका है, तालाब और पोखरेका स्नान उत्तम श्रेणीमें गिना गया है और नदीका स्नान उससे भी उत्तम है। इस प्रकार स्नान करके व्रत करनेवाला नरश्रेष्ठ क्रोध और लोभका त्याग करके उस दिन नीचों और पाखण्डी मनुष्यों से बात न करे । जो असत्यवादी, ब्राह्मणनिन्दक, दुराचारी, अगम्या स्त्रीके साथ समागममें रत रहनेवाले, परधनहारी, परस्त्रीगामी, दुर्वृत्त तथा मर्यादाका भङ्ग करनेवाले हैं, उनसे भी व्रती मनुष्य बात न करे। मन्दिरमें भगवान् केशवका पूजन करके वहाँ नैवेद्य लगवाये और भक्तियुक्त चित्तसे दीपदान करे। ब्राह्मणोंसे कथा सुनकर उन्हें दक्षिणा दे, रातको जागरण करे और श्रीकृष्ण-सम्बन्धी पदोंका गान एवं कीर्तन करे। वैष्णवव्रत (एकादशी) का पालन करना हो तो दशमीको काँसेका पात्र, मांस, मसूर, कोदो, चना, साग, शहद, पराया अन्न दुबारा भोजन तथा मैथुन – इन दस वस्तुओंको त्याग दे । जुएका खेल, निद्रा, मद्य-पान, दन्तधावन, परनिन्दा, चुगली, चोरी, हिंसा, रति, क्रोध और असत्यभाषण - एकादशीको इन ग्यारह वस्तुओंका त्याग कर देना चाहिये । काँसेका पात्र, मांस, शहद, तेल, मिथ्याभोजन, पिठ्ठी साठीका चावल और मसूर आदिका द्वादशीको सेवन न करे। इस विधि से उत्तम एकादशीव्रतका अनुष्ठान करे ।। १८-३० ॥

गोपियाँ बोलीं- परमबुद्धिमती श्रीराधे ! श्रीराधे ! एकादशीव्रतका समय बताओ। उससे क्या फल होता है, यह भी कहो तथा एकादशीके माहात्म्यका भी यथार्थरूपसे वर्णन करो ॥ ३१ ॥

श्रीराधाने कहा – यदि दशमी पचपन घड़ी (दण्ड) तक देखी जाती हो तो वह एकादशी त्याज्य है। फिर तो द्वादशीको ही उपवास करना चाहिये। यदि पलभर भी दशमीसे वैध प्राप्त हो तो वह सम्पूर्ण एकादशी तिथि त्याग देनेयोग्य है-ठीक उसी तरह, जैसे मदिराकी एक बूँद भी पड़ जाय तो गङ्गाजलसे भरा हुआ कलश त्याज्य हो जाता है। यदि एकादशी बढ़कर द्वादशीके दिन भी कुछ कालतक विद्यमान हो तो दूसरे दिनवाली एकादशी ही व्रतके योग्य है। पहली एकादशीको उस व्रतमें उपवास नहीं करना चाहिये ।। ३२-३४ ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से

 

 



1 टिप्पणी:

  1. 🌼🌿🌺जय श्रीकृष्ण🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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