रविवार, 6 अक्तूबर 2024

श्रीगर्ग-संहिता (माधुर्यखण्ड) आठवाँ अध्याय (पोस्ट 01)


# श्रीहरि: #

 

श्रीगर्ग-संहिता

(माधुर्यखण्ड)

आठवाँ अध्याय (पोस्ट 01)

 

यज्ञसीतास्वरूपा गोपियों के पूछने पर श्रीराधा  का श्रीकृष्णकी प्रसन्नता के लिये एकादशी- व्रत का अनुष्ठान बताना और उसके विधि, नियम और  वर्णन करना

 

श्रीनारद उवाच -
गोपीनां यज्ञसीतानामाख्यानं शृणु मैथिल ।
 सर्वपापहरं पुण्यं कामदं मङ्गलायनम् ॥१॥
 उशीनरो नाम देशो दक्षिणस्यां दिशि स्थितः ।
 एकदा तत्र पर्जन्यो न ववर्ष समा दश ॥२॥
 धनवन्तस्तत्र गोपा अनावृष्टिभयातुराः ।
 सकुटुम्बा गोधनैश्च व्रजमण्डलमाययुः ॥३॥
 पुण्ये वृन्दावने रम्ये कालिन्दीनिकटे शुभे ।
 नन्दराजसहायेन वासं ते चक्रिरे नृप ॥४॥
 तेषां गृहेषु सञ्जाता यज्ञसीताश्च गोपिकाः ।
 श्रीरामस्य वरा दिव्या दिव्ययौवनभूषिताः ॥५॥
 श्रीकृष्णं सुन्दरं दृष्ट्वा मोहितास्ता नृपेश्वर ।
 व्रतं कृष्णप्रसादार्थं प्रष्टुं राधां समाययुः ॥६॥


 गोप्य ऊचुः –
वृषभानुसुते दिव्ये हे राधे कञ्जलोचने ।
 श्रीकृष्णस्य प्रसादार्थं वद किञ्चिद्व्रतं शुभम् ॥७॥
 तव वश्यो नन्दसूनुर्देवैरपि सुदुर्गमः ।
 त्वं जगन्मोहिनी राधे सर्वशास्त्रार्थपारगा ॥८॥


 श्रीराधोवाच -
श्रीकृष्णस्य प्रसादार्थं कुरुतैकादशीव्रतम् ।
 तेन वश्यो हरिः साक्षाद्भविष्यति न संशयः ॥९॥


 गोप्य ऊचुः –
संवत्सरस्य द्वादश्या नामानि वद राधिके ।
 मासे मासे व्रतं तस्याः कर्तव्यं केन भावतः ॥१०॥


 श्रीरधोवाच –
मार्गशीर्षे कृष्णपक्षे उत्पन्ना विष्णुदेहतः ।
 मुरदैत्यवधार्थाय तिथिरेकादशी वरा ॥११॥
 मासे मासे पृथग्भूता सैव सर्वव्रतोत्तमा ।
 तस्याः षड्विंशतिं नाम्नां वक्ष्यामि हितकाम्यया ॥१२॥
 उत्पत्तिश्च तथा मोक्षा सफला च ततः परम् ।
 पुत्रदा षट्तिला चैव जया च विजया तथा ॥१३॥
 आमलकी तथा पश्चान्नाम्ना वै पापमोचनी ।
 कामदा च ततः पश्चात्कथिता वै वरूथिनी ॥१४॥
 मोहिनी चापरा प्रोक्ता निर्जला कथिता ततः ।
 योगिनी देवशयनी कामिनी च ततः परम् ॥१५॥
 पवित्रा चाप्यजा पद्मा इन्दिरा च ततः परम् ।
 पाशाङ्कुशा रमा चैव ततः पश्चात्प्रबोधिनी ॥१६॥
 सर्वसम्पत्प्रदा चैव द्वे प्रोक्ते मलमासजे ।
 एवं षड्विंशतिं नाम्नामेकादश्याः पठेच्च यः ॥१७॥

श्रीनारदजी कहते हैं- मिथिलेश्वर ! अब यज्ञ- सीतास्वरूपा गोपियोंका वर्णन सुनो, जो सब पापोंको हर लेनेवाला, पुण्यदायक, कामनापूरक तथा मङ्गलका धाम है ॥ १ ॥

दक्षिण दिशामें उशीनर नामसे प्रसिद्ध एक देश है, जहाँ एक समय दस वर्षोंतक इन्द्रने वर्षा नहीं की। उस देशमें जो गोधनसे सम्पन्न गोप थे, वे अनावृष्टिके भयसे व्याकुल हो अपने कुटुम्ब और गोधनोंके साथ व्रजमण्डलमें आ गये। नरेश्वर ! नन्दराजकी सहायतासे वे पवित्र वृन्दावनमें यमुनाके सुन्दर एवं सुरम्य तटपर वास करने लगे। भगवान् श्रीरामके वरसे यज्ञसीता- स्वरूपा गोपाङ्गनाएँ उन्हीं के घरोंमें उत्पन्न हुईं। उन सबके शरीर दिव्य थे तथा वे दिव्य यौवनसे विभूषित थीं। नृपेश्वर ! एक दिन वे सुन्दर श्रीकृष्णका दर्शन करके मोहित हो गयीं और श्रीकृष्णकी प्रसन्नताके लिये कोई व्रत पूछनेके उद्देश्यसे श्रीराधाके पास गयीं ॥। २ -६ ॥

गोपियाँ बोलीं- दिव्यस्वरूपे, कमललोचने, वृषभानुनन्दिनी श्रीराधे ! आप हमें श्रीकृष्णकी प्रसन्नताके लिये कोई शुभवत बतायें। जो देवताओंके लिये भी अत्यन्त दुर्लभ हैं, वे श्रीनन्दनन्दन तुम्हारे वशमें रहते हैं। राधे ! तुम विश्वमोहिनी हो और सम्पूर्ण शास्त्रोंके अर्थज्ञानमें पारंगत भी हो ।। ७-८ ॥

श्रीराधाने कहा - प्यारी बहिनो ! श्रीकृष्णकी प्रसन्नताके लिये तुम सब एकादशी व्रतका अनुष्ठान करो। उससे साक्षात् श्रीहरि तुम्हारे वशमें हो जायँगे, इसमें संशय नहीं है ॥ ९ ॥

गोपियोंने पूछा- राधिके ! पूरे वर्षभरकी एकादशियोंके क्या नाम हैं, यह बताओ। प्रत्येक मासमें एकादशीका व्रत किस भावसे करना चाहिये ? ॥ १० ॥

श्रीराधाने कहा- गोपकुमारियो ! मार्गशीर्ष मासके कृष्णपक्षमें भगवान् विष्णुके शरीरसे- मुख्यतः उनके मुखसे एक असुरका वध करनेके लिये एकादशीकी उत्पत्ति हुई, अतः वह तिथि अन्य सब तिथियोंसे श्रेष्ठ है। प्रत्येक मासमें पृथक्-पृथक् एकादशी होती है। वही सब व्रतोंमें उत्तम है। मैं तुम सबोंके हितकी कामनासे उस तिथिके छब्बीस नाम बता रही हूँ। (मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशीसे आरम्भ करके कार्तिक शुक्ला एकादशीतक चौबीस एकादशी तिथियाँ होती हैं। उनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं— ) उत्पन्ना, मोक्षा, सफला, पुत्रदा, षट्तिला, जया, विजया, आमलकी, पापमोचनी, कामदा, वरूथिनी, मोहिनी, अपरा, निर्जला, योगिनी, देवशयनी, कामिनी, पवित्रा, अजा, पद्मा, इन्दिरा, पापाङ्कुशा, रमा तथा प्रबोधिनी । दो एकादशी तिथियाँ मलमास की होती हैं। उन दोनोंका नाम सर्वसम्पत्प्रदा है। इस प्रकार जो एकादशी के छब्बीस नामों का पाठ करता है, वह भी वर्षभर की द्वादशी (एकादशी) तिथियोंके व्रतका फल पा लेता है । ११ – १७ ॥

 

शेष आगामी पोस्ट में --

गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीगर्ग-संहिता  पुस्तक कोड 2260 से

 




1 टिप्पणी:

  1. 🌹💖🥀💐जय श्रीहरि:🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव
    जय श्री राधे कृष्ण 🙏🙏

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