गुरुवार, 10 अक्तूबर 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पहला अध्याय..(पोस्ट०८)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध -पहला अध्याय..(पोस्ट०८)

उद्धव और विदुर की भेंट

कच्चित्पुराणौ पुरुषौ स्वनाभ्य
    पाद्मानुवृत्त्येह किलावतीर्णौ ।
आसात उर्व्याः कुशलं विधाय
    कृतक्षणौ कुशलं शूरगेहे ॥ २६ ॥
कच्चित् कुरूणां परमः सुहृन्नो
    भामः स आस्ते सुखमङ्ग शौरिः ।
यो वै स्वसॄणां पितृवद् ददाति
    वरान् वदान्यो वरतर्पणेन ॥ २७ ॥
कच्चिद् वरूथाधिपतिर्यदूनां
    प्रद्युम्न आस्ते सुखमङ्ग वीरः ।
यं रुक्मिणी भगवतोऽभिलेभे
    आराध्य विप्रान् स्मरमादिसर्गे ॥ २८ ॥
कच्चित्सुखं सात्वतवृष्णिभोज
    दाशार्हकाणामधिपः स आस्ते ।
यमभ्यषिञ्चत् शतपत्रनेत्रो
    नृपासनाशां परिहृत्य दूरात् ॥ २९ ॥

विदुरजी कहने लगे—उद्धवजी ! पुराणपुरुष बलराम जी और श्रीकृष्ण ने अपने ही नाभिकमल से उत्पन्न हुए ब्रह्माजी की प्रार्थना से इस जगत् में अवतार लिया है। वे पृथ्वी का भार उतारकर सब को आनन्द देते हुए अब श्रीवसुदेवजी के घर कुशल से रह रहे हैं न ? ॥ २६ ॥ प्रियवर ! हम कुरुवंशियों के परम सुहृद् और पूज्य वसुदेवजी, जो पिता के समान उदारतापूर्वक अपनी कुन्ती आदि बहिनों को उनके स्वामियों का सन्तोष कराते हुए उनकी सभी मनचाही वस्तुएँ देते आये हैं, आनन्दपूर्वक हैं न ? ॥ २७ ॥ प्यारे उद्धवजी ! यादवों के सेनापति वीरवर प्रद्युम्न जी तो प्रसन्न हैं न, जो पूर्वजन्म में कामदेव थे तथा जिन्हें देवी रुक्मिणीजी ने ब्राह्मणों की आराधना करके भगवान्‌ से प्राप्त किया था ॥ २८ ॥ सात्वत, वृष्णि, भोज और दाशाहर्वंशी यादवोंके अधिपति महाराज उग्रसेन तो सुखसे हैं न, जिन्होंने राज्य पानेकी आशाका सर्वथा परित्याग कर दिया था किन्तु कमलनयन भगवान्‌ श्रीकृष्ण ने जिन्हें फिर से राज्यसिंहासन पर बैठाया ॥ २९ ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🥀💖🌹🥀जय श्रीहरि:🙏🙏
    हे कृष्ण हे गोविंद हे माधव !!!
    श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव !!
    नारायण नारायण नारायण नारायण

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