शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-दूसरा अध्याय..(पोस्ट०२)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - दूसरा अध्याय..(पोस्ट०२)

उद्धवजी द्वारा भगवान्‌ की बाललीलाओं का वर्णन

कृष्णद्युमणि निम्लोचे गीर्णेष्वजगरेण ह ।
किं नु नः कुशलं ब्रूयां गतश्रीषु गृहेष्वहम् ॥ ७ ॥
दुर्भगो बत लोकोऽयं यदवो नितरामपि ।
ये संवसन्तो न विदुः हरिं मीना इवोडुपम् ॥ ८ ॥
इङ्‌गितज्ञाः पुरुप्रौढा एकारामाश्च सात्वताः ।
सात्वतां ऋषभं सर्वे भूतावासममंसत ॥ ९ ॥
देवस्य मायया स्पृष्टा ये चान्यद् असदाश्रिताः ।
भ्राम्यते धीर्न तद्वाक्यैः आत्मन्युप्तात्मनो हरौ ॥ १० ॥

उद्धवजी बोले—विदुरजी ! श्रीकृष्णरूप सूर्यके छिप जाने से हमारे घरों को कालरूप अजगर ने खा डाला है, वे श्रीहीन हो गये हैं; अब मैं उनकी क्या कुशल सुनाऊँ ॥ ७ ॥ ओह ! यह मनुष्यलोक बड़ा ही अभागा है; इसमें भी यादव तो नितान्त भाग्यहीन हैं, जिन्होंने निरन्तर श्रीकृष्णके साथ रहते हुए भी उन्हें नहीं पहचाना—जिस तरह अमृतमय चन्द्रमाके समुद्रमें रहते समय मछलियाँ उन्हें नहीं पहचान सकी थीं ॥ ८ ॥ यादवलोग मनके भावको ताडऩेवाले, बड़े समझदार और भगवान्‌के साथ एक ही स्थानमें रहकर क्रीडा करनेवाले थे; तो भी उन सबने समस्त विश्वके आश्रय, सर्वान्तर्यामी श्रीकृष्णको एक श्रेष्ठ यादव ही समझा ॥ ९ ॥ किंतु भगवान्‌ की माया से मोहित इन यादवों और इनसे व्यर्थका वैर ठानने वाले शिशुपाल आदि के अवहेलना और निन्दासूचक वाक्यों से भगवत्प्राण महानुभावों की बुद्धि भ्रम में नहीं पड़ती थी ॥ १० ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌹💖🥀🌺जय श्रीकृष्ण🙏🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    गोविंद गोविंद हरे मुरारे
    गोविंद गोविंद मुकुंद कृष्ण
    गोविंद गोविंद रथांग पाणे
    गोविंद दामोदर माधवेति !!!

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