शुक्रवार, 8 नवंबर 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-चौथा अध्याय..(पोस्ट०५)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - चौथा अध्याय..(पोस्ट०५)

उद्धवजीसे विदा होकर विदुरजीका मैत्रेय ऋषिके पास जाना

मन्त्रेषु मां वा उपहूय यत्त्वं
     अकुण्ठिताखण्डसदात्मबोधः ।
पृच्छेः प्रभो मुग्ध इवाप्रमत्तः
     तन्नो मनो मोहयतीव देव ॥ १७ ॥
ज्ञानं परं स्वात्मरहःप्रकाशं
     प्रोवाच कस्मै भगवान् समग्रम् ।
अपि क्षमं नो ग्रहणाय भर्तः
     वदाञ्जसा यद् वृजिनं तरेम ॥ १८ ॥
इत्यावेदितहार्दाय मह्यं स भगवान् परः ।
आदिदेश अरविन्दाक्ष आत्मनः परमां स्थितिम् ॥ १९ ॥

(उद्धवजी भगवान् से कह रहे हैं) देव ! आपका स्वरूपज्ञान सर्वथा अबाध और अखण्ड है। फिर भी आप सलाह लेनेके लिये मुझे बुलाकर जो भोले मनुष्यों की तरह बड़ी सावधानीसे मेरी सम्मति पूछा करते थे, प्रभो ! आपकी वह लीला मेरे मनको मोहित-सा कर देती है ॥ १७ ॥ स्वामिन् ! अपने स्वरूपका गूढ़ रहस्य प्रकट करनेवाला जो श्रेष्ठ एवं समग्र ज्ञान आपने ब्रह्माजीको बतलाया था, वह यदि मेरे समझने योग्य हो तो मुझे भी सुनाइये, जिससे मैं भी इस संसार-दु:खको सुगमतासे पार कर जाऊँ’ ॥ १८ ॥ जब मैंने इस प्रकार अपने हृदयका भाव निवेदित किया, तब परमपुरुष कमलनयन भगवान्‌ श्रीकृष्णने मुझे अपने स्वरूपकी परम स्थितिका उपदेश दिया ॥ १९ ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌹💖🥀🌺जय श्रीकृष्ण🙏🙏
    नमामि पद्मलोचनम् !!
    ॐ श्रीपरमात्मने नमः
    श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव !!

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