शनिवार, 14 दिसंबर 2024

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-आठवां अध्याय..(पोस्ट०३)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - आठवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)

ब्रह्माजीकी उत्पत्ति

उदाप्लुतं विश्वमिदं तदासीत्
     यन्निद्रयामीलितदृङ् न्यमीलयत् ।
अहीन्द्रतल्पेऽधिशयान एकः
     कृतक्षणः स्वात्मरतौ निरीहः ॥ १० ॥
सोऽन्तः शरीरेऽर्पितभूतसूक्ष्मः
     कालात्मिकां शक्तिमुदीरयाणः ।
उवास तस्मिन् सलिले पदे स्वे
     यथानलो दारुणि रुद्धवीर्यः ॥ ११ ॥
चतुर्युगानां च सहस्रमप्सु
     स्वपन् स्वयोदीरितया स्वशक्त्या ।
कालाख्ययाऽऽसादितकर्मतन्त्रो
     लोकानपीतान्ददृशे स्वदेहे ॥ १२ ॥
तस्यार्थसूक्ष्माभिनिविष्टदृष्टेः
     अन्तर्गतोऽर्थो रजसा तनीयान् ।
गुणेन कालानुगतेन विद्धः
     सूष्यंस्तदाभिद्यत नाभिदेशात् ॥ १३ ॥

(श्रीमैत्रेयजी कहते हैं) सृष्टिके पूर्व यह सम्पूर्ण विश्व जलमें डूबा हुआ था। उस समय एकमात्र श्रीनारायणदेव शेष- शय्यापर पौढ़े हुए थे। वे अपनी ज्ञानशक्तिको अक्षुण्ण रखते हुए ही, योगनिद्राका आश्रय ले, अपने नेत्र मूँदे हुए थे। सृष्टिकर्मसे अवकाश लेकर आत्मानन्दमें मग्न थे। उनमें किसी भी क्रियाका उन्मेष नहीं था ॥ १० ॥ जिस प्रकार अग्नि अपनी दाहिका आदि शक्तियोंको छिपाये हुए काष्ठमें व्याप्त रहता है, उसी प्रकार श्रीभगवान्‌ ने सम्पूर्ण प्राणियों के सूक्ष्म शरीरों को अपने शरीर में लीन करके अपने आधारभूत उस जलमें शयन किया, उन्हें सृष्टिकाल आनेपर पुन: जगानेके लिये केवल कालशक्तिको जाग्रत् रखा ॥ ११ ॥ इस प्रकार अपनी स्वरूपभूता चिच्छक्तिके साथ एक सहस्र चतुर्युगपर्यन्त जलमें शयन करनेके अनन्तर जब उन्हींके द्वारा नियुक्त उनकी कालशक्तिने उन्हें जीवोंके कर्मोंकी प्रवृत्तिके लिये प्रेरित किया, तब उन्होंने अपने शरीरमें लीन हुए अनन्त लोक देखे ॥ १२ ॥ जिस समय भगवान्‌ की दृष्टि अपने में निहित लिङ्ग शरीरादि सूक्ष्मतत्त्व पर पड़ी, तब वह कालाश्रित रजोगुण से क्षुभित होकर सृष्टिरचना के निमित्त उनके नाभिदेश से बाहर निकला ॥ १३ ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🥀💖🌹जय श्रीहरि: 🙏🙏
    ॐ श्रीपरमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव !!

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