॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - पंद्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)
जय-विजय को सनकादि का शाप
मैत्रेय उवाच ।
प्राजापत्यं तु तत्तेजः परतेजोहनं दितिः ।
दधार वर्षाणि शतं शङ्कमाना सुरार्दनात् ॥ १ ॥
लोके तेनाहतालोके लोकपाला हतौजसः ।
न्यवेदयन्विश्वसृजे ध्वान्तव्यतिकरं दिशाम् ॥ २ ॥
देवा ऊचुः
तम एतद्विभो वेत्थ संविग्ना यद्वयं भृशम् ।
न ह्यव्यक्तं भगवतः कालेनास्पृष्टवर्त्मनः ॥ ३ ॥
देवदेव जगद्धातः लोकनाथशिखामणे ।
परेषामपरेषां त्वं भूतानामसि भाववित् ॥ ४ ॥
नमो विज्ञानवीर्याय माययेदमुपेयुषे ।
गृहीतगुणभेदाय नमस्तेऽव्यक्तयोनये ॥ ५ ॥
श्रीमैत्रेयजी ने कहा—विदुरजी ! दितिको अपने पुत्रोंसे देवताओं को कष्ट पहुँचने की आशङ्का थी, इसलिये उसने दूसरों के तेज का नाश करनेवाले उस कश्यपजी के तेज (वीर्य) को सौ वर्षों तक अपने उदर में ही रखा ॥ १ ॥ उस गर्भस्थ तेज से ही लोकों में सूर्यादि का प्रकाश क्षीण होने लगा तथा इन्द्रादि लोकपाल भी तेजोहीन हो गये। तब उन्होंने ब्रह्माजी के पास जाकर कहा कि सब दिशाओं में अन्धकार के कारण बड़ी अव्यवस्था हो रही है ॥ २ ॥
देवताओं ने कहा—भगवन् ! काल आपकी ज्ञानशक्ति को कुण्ठित नहीं कर सकता, इसलिये आपसे कोई बात छिपी नहीं है। आप इस अन्धकार के विषय में भी जानते ही होंगे, हम तो इससे बड़े ही भयभीत हो रहे हैं ॥ ३ ॥ देवाधिदेव ! आप जगत् के रचयिता और समस्त लोकपालों के मुकुटमणि हैं। आप छोटे-बड़े सभी जीवों का भाव जानते हैं ॥ ४ ॥ देव ! आप विज्ञानबलसम्पन्न हैं; आपने मायासे ही यह चतुर्मुख रूप और रजोगुण स्वीकार किया है; आपकी उत्पत्ति के वास्तविक कारण को कोई नहीं जान सकता। हम आपको नमस्कार करते हैं ॥ ५ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌹💖🥀ॐश्रीपरमात्मने नमः
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव: !!