॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - सत्रहवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)
हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष का जन्म तथा
हिरण्याक्ष की दिग्विजय
चक्रे हिरण्यकशिपुः दोर्भ्यां ब्रह्मवरेण च ।
वशे सपालान् लोकान् त्रीन् अकुतोमृत्युरुद्धतः ॥ १९ ॥
हिरण्याक्षो अनुजस्तस्य प्रियः प्रीतिकृदन्वहम् ।
गदापाणिर्दिवं यातो युयुत्सुः मृगयन् रणम् ॥ २० ॥
तं वीक्ष्य दुःसहजवं रणत् काञ्चन नूपुरम् ।
वैजयन्त्या स्रजा जुष्टं अंस न्यस्त महागदम् ॥ २१ ॥
मनोवीर्यवर उत्सिक्तं असृण्यं अकुतोभयम् ।
भीता निलिल्यिरे देवाः तार्क्ष्य त्रस्तः इवाहयः ॥ २२ ॥
स वै तिरोहितान् दृष्ट्वा महसा स्वेन दैत्यराट् ।
स-इन्द्रान् देवगणान् क्षीबान् अपश्यन् व्यनदद्भृःशम् ॥ २३ ॥
ततो निवृत्तः क्रीडिष्यन् गम्भीरं भीमनिस्वनम् ।
विजगाहे महासत्त्वो वार्धिं मत्त इव द्विपः ॥ २४ ॥
तस्मिन्प्रविष्टे वरुणस्य सैनिका
यादोगणाः सन्नधियः ससाध्वसाः ।
अहन्यमाना अपि तस्य वर्चसा
प्रधर्षिता दूरतरं प्रदुद्रुवुः ॥ २५ ॥
हिरण्यकशिपु ब्रह्माजीके वरसे मृत्युभयसे मुक्त हो जानेके कारण बड़ा उद्धत हो गया था। उसने अपनी भुजाओंके बलसे लोकपालोंके सहित तीनों लोकोंको अपने वशमें कर लिया ॥ १९ ॥ वह अपने छोटे भाई हिरण्याक्षको बहुत चाहता था और वह भी सदा अपने बड़े भाईका प्रिय कार्य करता रहता था। एक दिन वह हिरण्याक्ष हाथमें गदा लिये युद्धका अवसर ढूँढ़ता हुआ स्वर्गलोकमें जा पहुँचा ॥ २० ॥ उसका वेग बड़ा असह्य था। उसके पैरोंमें सोनेके नूपुरोंकी झनकार हो रही थी, गलेमें विजयसूचक माला धारण की हुई थी और कंधेपर विशाल गदा रखी हुई थी ॥ २१ ॥ उसके मनोबल, शारीरिक बल तथा ब्रह्माजीके वरने उसे मतवाला कर रखा था; इसलिये वह सर्वथा निरङ्कुश और निर्भय हो रहा था। उसे देखकर देवता लोग डरके मारे वैसे ही जहाँ-तहाँ छिप गये, जैसे गरुडक़े डर से साँप छिप जाते हैं ॥ २२ ॥ जब दैत्यराज हिरण्याक्षने देखा कि मेरे तेजके सामने बड़े-बड़े गर्वीले इन्द्रादि देवता भी छिप गये हैं, तब उन्हें अपने सामने न देखकर वह बार-बार भयङ्कर गर्जना करने लगा ॥ २३ ॥ फिर वह महाबली दैत्य वहाँसे लौटकर जलक्रीडा करनेके लिये मतवाले हाथीके समान गहरे समुद्रमें घुस गया, जिसमें लहरोंकी बड़ी भयङ्कर गर्जना हो रही थी ॥ २४ ॥ ज्यों ही उसने समुद्रमें पैर रखा कि डरके मारे वरुणके सैनिक जलचर जीव हकबका गये और किसी प्रकार की छेड़छाड़ न करनेपर भी वे उसकी धाक से ही घबराकर बहुत दूर भाग गये ॥ २५ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
🪷🥀🌹🪷जयश्रीकृष्ण🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्रीपरमात्मने नमः
श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव: !!