शनिवार, 12 अप्रैल 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - बीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
तृतीय स्कन्ध - बीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)

ब्रह्माजीकी रची हुई अनेक प्रकारकी सृष्टिका वर्णन

देवताः प्रभया या या दीव्यन् प्रमुखतोऽसृजत् ।
ते अहार्षुर्देवयन्तो विसृष्टां तां प्रभामहः ॥ २२ ॥
देवोऽदेवाञ्जघनतः सृजति स्मातिलोलुपान् ।
ते एनं लोलुपतया मैथुनायाभिपेदिरे ॥ २३ ॥
ततो हसन् स भगवान् असुरैर्निरपत्रपैः ।
अन्वीयमानस्तरसा क्रुद्धो भीतः परापतत् ॥ २४ ॥
स उपव्रज्य वरदं प्रपन्नार्तिहरं हरिम् ।
अनुग्रहाय भक्तानां अनुरूपात्मदर्शनम् ॥ २५ ॥
पाहि मां परमात्मंस्ते प्रेषणेनासृजं प्रजाः ।
ता इमा यभितुं पापा उपाक्रामन्ति मां प्रभो ॥ २६ ॥
त्वमेकः किल लोकानां क्लिष्टानां क्लेशनाशनः ।
त्वमेकः क्लेशदस्तेषां अनासन्न पदां तव ॥ २७ ॥
सोऽवधार्यास्य कार्पण्यं विविक्ताध्यात्मदर्शनः ।
विमुञ्चात्मतनुं घोरां इत्युक्तो विमुमोच ह ॥ २८ ॥

फिर ब्रह्माजीने सात्त्विकी प्रभा से देदीप्यमान होकर मुख्य-मुख्य देवताओं की रचना की। उन्होंने क्रीडा करते हुए, ब्रह्माजी के त्यागनेपर, उनका वह दिनरूप प्रकाशमय शरीर ग्रहण कर लिया ॥ २२ ॥ इसके पश्चात् ब्रह्माजीने अपने जघनदेश से कामासक्त असुरों को उत्पन्न किया। वे अत्यन्त कामलोलुप होनेके कारण उत्पन्न होते ही मैथुनके लिये ब्रह्माजीकी ओर चले ॥ २३ ॥ यह देखकर पहले तो वे हँसे; किन्तु फिर उन निर्लज्ज असुरोंको अपने पीछे लगा देख भयभीत और क्रोधित होकर बड़े जोरसे भागे ॥ २४ ॥ तब उन्होंने भक्तोंपर कृपा करनेके लिये उनकी भावनाके अनुसार दर्शन देनेवाले, शरणागतवत्सल वरदायक श्रीहरिके पास जाकर कहा— ॥ २५ ॥ ‘परमात्मन् ! मेरी रक्षा कीजिये; मैंने तो आपकी ही आज्ञासे प्रजा उत्पन्न की थी, किन्तु यह तो पाप में प्रवृत्त होकर मुझको ही तंग करने चली है ॥ २६ ॥ नाथ ! एकमात्र आप ही दुखी जीवों का दु:ख दूर करनेवाले हैं और जो आपकी चरण-शरणमें नहीं आते, उन्हें दु:ख देनेवाले भी एकमात्र आप ही हैं’ ॥ २७ ॥ प्रभु तो प्रत्यक्षवत् सबके हृदयकी जाननेवाले हैं। उन्होंने ब्रह्माजीकी आतुरता देखकर कहा—‘तुम अपने इस कामकलुषित शरीरको त्याग दो।’ भगवान्‌के यों कहते ही उन्होंने वह शरीर भी छोड़ दिया ॥ २८ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🪷🌿🪷जय श्रीहरि:🙏🙏
    ॐ श्रीपरमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
    हे नाथ नारायण वासुदेव: !!

    जवाब देंहटाएं

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - इक्कीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - इक्कीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०२) कर्दमजी की तपस्या और भगवान्‌ का वरदान मैत्रेय उवा...