॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - चौबीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)
श्रीकपिलदेवजी का जन्म
ब्रह्मोवाच –
त्वया मेऽपचितिस्तात कल्पिता निर्व्यलीकतः ।
यन्मे सञ्जगृहे वाक्यं भवान्मानद मानयन् ॥ १२ ॥
एतावत्येव शुश्रूषा कार्या पितरि पुत्रकैः ।
बाढं इति अनुमन्येत गौरवेण गुरोर्वचः ॥ १३ ॥
इमा दुहितरः सभ्य तव वत्स सुमध्यमाः ।
सर्गमेतं प्रभावैः स्वैः बृंहयिष्यन्ति अनेकधा ॥ १४ ॥
अतस्त्वं ऋषिमुख्येभ्यो यथाशीलं यथारुचि ।
आत्मजाः परिदेह्यद्य विस्तृणीहि यशो भुवि ॥ १५ ॥
वेदाहमाद्यं पुरुषं अवतीर्णं स्वमायया ।
भूतानां शेवधिं देहं बिभ्राणं कपिलं मुने ॥ १६ ॥
श्रीब्रह्माजीने कहा—प्रिय कर्दम ! तुम दूसरोंको मान देनेवाले हो। तुमने मेरा सम्मान करते हुए जो मेरी आज्ञाका पालन किया है, इससे तुम्हारे द्वारा निष्कपट-भावसे मेरी पूजा सम्पन्न हुई है ॥ १२ ॥ पुत्रोंको अपने पिताकी सबसे बड़ी सेवा यही करनी चाहिये कि ‘जो आज्ञा’ ऐसा कहकर आदरपूर्वक उनके आदेशको स्वीकार करें ॥ १३ ॥ बेटा ! तुम सभ्य हो, तुम्हारी ये सुन्दरी कन्याएँ अपने वंशोंद्वारा इस सृष्टिको अनेक प्रकारसे बढ़ावेंगी ॥ १४ ॥ अब तुम इन मरीचि आदि मुनिवरों को इनके स्वभाव और रुचिके अनुसार अपनी कन्याएँ समर्पित करो और संसारमें अपना सुयश फैलाओ ॥ १५ ॥ मुने ! मैं जानता हूँ, जो सम्पूर्ण प्राणियोंकी निधि हैं—उनके अभीष्ट मनोरथ पूर्ण करनेवाले हैं, वे आदिपुरुष श्रीनारायण ही अपनी योगमाया से कपिल के रूप में अवतीर्ण हुए हैं ॥ १६ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌹💖🥀जय श्री हरि: !!🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्रीपरमात्मने नमः
नारायण नारायण नारायण नारायण