॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - चौबीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०८)
श्रीकपिलदेवजी का जन्म
श्रीभगवानुवाच –
मया प्रोक्तं हि लोकस्य प्रमाणं सत्यलौकिके ।
अथाजनि मया तुभ्यं यदवोचमृतं मुने ॥ ३५ ॥
एतन्मे जन्म लोकेऽस्मिन् मुमुक्षूणां दुराशयात् ।
प्रसङ्ख्यानाय तत्त्वानां सम्मतायात्मदर्शने ॥ ३६ ॥
एष आत्मपथोऽव्यक्तो नष्टः कालेन भूयसा ।
तं प्रवर्तयितुं देहं इमं विद्धि मया भृतम् ॥ ३७ ॥
गच्छ कामं मयाऽऽपृष्टो मयि सन्न्यस्तकर्मणा ।
जित्वा सुदुर्जयं मृत्युं अमृतत्वाय मां भज ॥ ३८ ॥
मामात्मानं स्वयंज्योतिः सर्वभूतगुहाशयम् ।
आत्मन्येवात्मना वीक्ष्य विशोकोऽभयमृच्छसि ॥ ३९ ॥
मात्र आध्यात्मिकीं विद्यां शमनीं सर्वकर्मणाम् ।
वितरिष्ये यया चासौ भयं चातितरिष्यति ॥ ४० ॥
श्रीभगवान् ने (कर्दमजी को) कहा—मुने ! वैदिक और लौकिक सभी कर्मों में संसार के लिये मेरा कथन ही प्रमाण है। इसलिये मैंने जो तुमसे कहा था कि ‘मैं तुम्हारे यहाँ जन्म लूँगा’, उसे सत्य करनेके लिये ही मैंने यह अवतार लिया है ॥ ३५ ॥ इस लोक में मेरा यह जन्म लिङ्गशरीर से मुक्त होने की इच्छावाले मुनियों के लिये आत्मदर्शन में उपयोगी प्रकृति आदि तत्त्वों का विवेचन करनेके लिये ही हुआ है ॥ ३६ ॥ आत्मज्ञान का यह सूक्ष्म मार्ग बहुत समय से लुप्त हो गया है । इसे फिरसे प्रवृत्त करनेके लिये ही मैंने यह शरीर ग्रहण किया है—ऐसा जानो ॥ ३७ ॥ मुने ! मैं आज्ञा देता हूँ, तुम इच्छानुसार जाओ और अपने सम्पूर्ण कर्म मुझे अर्पण करते हुए दुर्जय मृत्यु को जीतकर मोक्षपद प्राप्त करने के लिये मेरा भजन करो ॥ ३८ ॥ मैं स्वयंप्रकाश और सम्पूर्ण जीवोंके अन्त:करणों में रहनेवाला परमात्मा ही हूँ। अत: जब तुम विशुद्ध बुद्धिके द्वारा अपने अन्त:करण में मेरा साक्षात्कार कर लोगे, तब सब प्रकारके शोकों से छूटकर निर्भय पद (मोक्ष) प्राप्त कर लोगे ॥ ३९ ॥ माता देवहूति को भी मैं सम्पूर्ण कर्मोंसे छुड़ानेवाला आत्मज्ञान प्रदान करूँगा, जिससे यह संसाररूप भय से पार हो जायगी ॥ ४० ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
🌹💖🥀 जय श्रीहरि: !!🙏
जवाब देंहटाएंॐ श्रीपरमात्मने नमः
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव: !!