॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
तृतीय स्कन्ध - उनतीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)
भक्ति का मर्म और काल की महिमा
निषेवितेनानिमित्तेन स्वधर्मेण महीयसा ।
क्रियायोगेन शस्तेन नातिहिंस्रेण नित्यशः ॥ १५ ॥
मद्धिष्ण्य दर्शनस्पर्श पूजास्तुति अभिवन्दनैः ।
भूतेषु मद्भारवनया सत्त्वेनासङ्गमेन च ॥ १६ ॥
महतां बहुमानेन दीनानां अनुकम्पया ।
मैत्र्या चैवात्मतुल्येषु यमेन नियमेन च ॥ १७ ॥
आध्यात्मिकानुश्रवणात् नामसङ्कीर्तनाच्च मे ।
आर्जवेनार्यसङ्गेन निरहङ्क्रियया तथा ॥ १८ ॥
मद् धर्मणो गुणैः एतैः परिसंशुद्ध आशयः ।
पुरुषस्याञ्जसाभ्येति श्रुतमात्रगुणं हि माम् ॥ १९ ॥
निष्कामभावसे श्रद्धापूर्वक अपने नित्य-नैमित्तिक कर्तव्योंका पालन कर, नित्यप्रति हिंसारहित उत्तम क्रियायोगका अनुष्ठान करने, मेरी प्रतिमा का दर्शन, स्पर्श, पूजा, स्तुति और वन्दना करने, प्राणियोंमें मेरी भावना करने, धैर्य और वैराग्यके अवलम्बन, महापुरुषोंका मान, दीनोंपर दया और समान स्थितिवालों के प्रति मित्रता का व्यवहार करने, यम-नियमों का पालन, अध्यात्मशास्त्रों का श्रवण और मेरे नामों का उच्च स्वर से कीर्तन करने से तथा मन की सरलता, सत्पुरुषों के सङ्ग और अहंकार के त्याग से मेरे धर्मों का (भागवतधर्मोंका ) अनुष्ठान करनेवाले भक्त पुरुष का चित्त अत्यन्त शुद्ध होकर मेरे गुणों के श्रवणमात्र से अनायास ही मुझ में लग जाता है ॥ १५—१९ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌹💖🥀 ॐ श्रीपरमात्मने नमः
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव: !!
हे नाथ नारायण वासुदेव: !!