॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
चतुर्थ स्कन्ध – दसवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)
उत्तम का मारा जाना, ध्रुव का यक्षों के साथ युद्ध
ततो निष्क्रम्य बलिन उपदेवमहाभटाः ।
असहन्तः तन्निनादं अभिपेतुरुदायुधाः ॥ ७ ॥
स तान् आपततो वीर उग्रधन्वा महारथः ।
एकैकं युगपत्सर्वान् अहन् बाणैस्त्रिभिस्त्रिभिः ॥ ८ ॥
ते वै ललाटलग्नैस्तैः इषुभिः सर्व एव हि ।
मत्वा निरस्तमात्मानं आशंसन्कर्म तस्य तत् ॥ ९ ॥
तेऽपि चामुममृष्यन्तः पादस्पर्शमिवोरगाः ।
शरैरविध्यन् युगपद् द्विगुणं प्रचिकीर्षवः ॥ १० ॥
ततः परिघनिस्त्रिंशैः प्रासशूलपरश्वधैः ।
शक्त्यृष्टिभिर्भुशुण्डीभिः चित्रवाजैः शरैरपि ॥ ११ ॥
अभ्यवर्षन् प्रन्प्रकुपिताः सरथं सहसारथिम् ।
इच्छन्तः तत्प्रतीकर्तुं अयुतानां त्रयोदश ॥ १२ ॥
औत्तानपादिः स तदा शस्त्रवर्षेण भूरिणा ।
न एवादृश्यताच्छन्न आसारेण यथा गिरिः ॥ १३ ॥
हाहाकारस्तदैवासीत् सिद्धानां दिवि पश्यताम् ।
हतोऽयं मानवः सूर्यो मग्नः पुण्यजनार्णवे ॥ १४ ॥
नदत्सु यातुधानेषु जयकाशिष्वथो मृधे ।
उदतिष्ठद् रथस्तस्य नीहारादिव भास्करः ॥ १५ ॥
(श्रीमैत्रेयजी कह रहे हैं) वीरवर विदुरजी ! महाबलवान् यक्षवीरों को वह शङ्खनाद सहन न हुआ। इसलिये वे तरह- तरहके अस्त्र-शस्त्र लेकर नगरके बाहर निकल आये और ध्रुवपर टूट पड़े ॥ ७ ॥ महारथी ध्रुव प्रचण्ड धनुर्धर थे। उन्होंने एक ही साथ उनमेंसे प्रत्येकको तीन-तीन बाण मारे ॥ ८ ॥ उन सभीने जब अपने-अपने मस्तकोंमें तीन-तीन बाण लगे देखे, तब उन्हें यह विश्वास हो गया कि हमारी हार अवश्य होगी। वे ध्रुवजीके इस अद्भुत पराक्रमकी प्रशंसा करने लगे ॥ ९ ॥ फिर जैसे सर्प किसीके पैरोंका आघात नहीं सहते, उसी प्रकार ध्रुवके इस पराक्रमको न सहकर उन्होंने भी उनके बाणोंके जवाबमें एक ही साथ उनसे दूने—छ:-छ: बाण छोड़े ॥ १० ॥ यक्षोंकी संख्या तेरह अयुत (१३००००) थी। उन्होंने ध्रुवजीका बदला लेनेके लिये अत्यन्त कुपित होकर रथ और सारथीके सहित उनपर परिघ, खड्ग, प्रास, त्रिशूल, फरसा, शक्ति, ऋष्टि, भुशुण्डी तथा चित्र-विचित्र पंखदार बाणोंकी वर्षा की ॥ ११-१२ ॥ इस भीषण शस्त्रवर्षासे ध्रुवजी बिलकुल ढक गये। तब लोगोंको उनका दीखना वैसे ही बंद हो गया, जैसे भारी वर्षासे पर्वतका ॥ १३ ॥ उस समय जो सिद्धगण आकाशमें स्थित होकर यह दृश्य देख रहे थे, वे सब हाय-हाय करके कहने लगे—‘आज यक्षसेनारूप समुद्रमें डूबकर यह मानव-सूर्य अस्त हो गया’ ॥ १४ ॥ यक्षलोग अपनी विजयकी घोषणा करते हुए युद्धक्षेत्रमें सिंहकी तरह गरजने लगे। इसी बीचमें ध्रुवजीका रथ एकाएक वैसे ही प्रकट हो गया, जैसे कुहरेमेंसे सूर्यभगवान् निकल आते हैं ॥ १५ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌹💐🥀जय श्रीमन्नारायण🙏
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श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव: !!