बुधवार, 8 अक्टूबर 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण चतुर्थ स्कन्ध - बारहवां अध्याय..(पोस्ट०५)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
चतुर्थ स्कन्ध – बारहवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)

ध्रुवजी को कुबेर का वरदान और विष्णुलोक की प्राप्ति

मैत्रेय उवाच -
निशम्य वैकुण्ठनियोज्यमुख्ययोः
     मधुच्युतं वाचमुरुक्रमप्रियः ।
कृताभिषेकः कृतनित्यमङ्‌गलो
     मुनीन् प्रणम्याशिषमभ्यवादयत् ॥ २८ ॥
परीत्याभ्यर्च्य धिष्ण्याग्र्यं पार्षदौ अवभिवन्द्य च ।
इयेष तदधिष्ठातुं बिभ्रद्‌रूपं हिरण्मयम् ॥ २९ ॥
तदोत्तानपदः पुत्रो ददर्शान्तकमागतम् ।
मृत्योर्मूर्ध्नि पदं दत्त्वा आरुरोहाद्‌भुतं गृहम् ॥ ३० ॥
तदा दुन्दुभयो नेदुः मृदङ्‌गपणवादयः ।
गन्धर्वमुख्याः प्रजगुः पेतुः कुसुमवृष्टयः ॥ ३१ ॥
स च स्वर्लोकमारोक्ष्यन् सुनीतिं जननीं ध्रुवः ।
अन्वस्मरदगं हित्वा दीनां यास्ये त्रिविष्टपम् ॥ ३२ ॥
इति व्यवसितं तस्य व्यवसाय सुरोत्तमौ ।
दर्शयामासतुर्देवीं पुरो यानेन गच्छतीम् ॥ ३३ ॥
तत्र तत्र प्रशंसद्‌भिः पथि वैमानिकैः सुरैः ।
अवकीर्यमाणो ददृशे कुसुमैः क्रमशो ग्रहान् ॥ ३४ ॥
त्रिलोकीं देवयानेन सोऽतिव्रज्य मुनीनपि ।
परस्ताद्यद्ध्रुवगतिः विष्णोः पदमथाभ्यगात् ॥ ३५ ॥

श्रीमैत्रेयजी कहते हैं—भगवान्‌के प्रमुख पार्षदोंके ये अमृतमय वचन सुनकर परम भागवत ध्रुवजीने स्नान किया, फिर सन्ध्या-वन्दनादि नित्यकर्मसे निवृत्त हो माङ्गलिक अलङ्कारादि धारण किये। बदरिकाश्रममें रहनेवाले मुनियोंको प्रणाम करके उनका आशीर्वाद लिया ॥ २८ ॥ इसके बाद उस श्रेष्ठ विमानकी पूजा और प्रदक्षिणा की और पार्षदोंको प्रणाम कर सुवर्णके समान कान्तिमान् दिव्य रूप धारण कर उसपर चढऩेको तैयार हुए ॥ २९ ॥ इतनेमें ही ध्रुवजीने देखा कि काल मूर्तिमान् होकर उनके सामने खड़ा है। तब वे मृत्युके सिरपर पैर रखकर उस समय अद्भुत विमानपर चढ़ गये ॥ ३० ॥ उस समय आकाशमें दुन्दुभि, मृदङ्ग और ढोल आदि बाजे बजने लगे, श्रेष्ठ गन्धर्व गान करने लगे और फूलोंकी वर्षा होने लगी ॥ ३१ ॥
विमानपर बैठकर ध्रुवजी ज्यों-ही भगवान्‌के धामको जानेके लिये तैयार हुए, त्यों-ही उन्हें अपनी माता सुनीतिका स्मरण हो आया। वे सोचने लगे, ‘क्या मैं बेचारी माताको छोडक़र अकेला ही दुर्लभ वैकुण्ठधामको जाऊँगा ?’ ॥ ३२ ॥ नन्द और सुनन्दने ध्रुवके हृदयकी बात जानकर उन्हें दिखलाया कि देवी सुनीति आगे-आगे दूसरे विमानपर जा रही हैं ॥ ३३ ॥ उन्होंने क्रमश: सूर्य आदि सभी ग्रह देखे। मार्गमें जहाँ-तहाँ विमानोंपर बैठे हुए देवता उनकी प्रशंसा करते हुए फूलोंकी वर्षा करते जाते थे ॥ ३४ ॥ उस दिव्य विमानपर बैठकर ध्रुवजी त्रिलोकीको पारकर सप्तर्षिमण्डलसे भी ऊपर भगवान्‌ विष्णुके नित्यधाममें पहुँचे। इस प्रकार उन्होंने अविचल गति प्राप्त की ॥ ३५ ॥ 

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌹💟🥀जय श्री हरि: !!🙏
    ॐ श्रीपरमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    हे नाथ नारायण वासुदेव: !!

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