गुरुवार, 30 अक्टूबर 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण चतुर्थ स्कन्ध - इक्कीसवां अध्याय..(पोस्ट०६)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
चतुर्थ स्कन्ध – इक्कीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०६)

महाराज पृथुका अपनी प्रजाको उपदेश

मैत्रेय उवाच –

इति ब्रुवाणं नृपतिं पितृदेवद्विजातयः ।
तुष्टुवुर्हृष्टमनसः साधुवादेन साधवः ॥ ४५ ॥
पुत्रेण जयते लोकान् इति सत्यवती श्रुतिः ।
ब्रह्मदण्डहतः पापो यद्वेनोऽत्यतरत्तमः ॥ ४६ ॥
हिरण्यकशिपुश्चापि भगवन् निन्दया तमः ।
विविक्षुरत्यगात्सूनोः प्रह्लादस्यानुभावतः ॥ ४७॥
वीरवर्य पितः पृथ्व्याः समाः सञ्जीव शाश्वतीः ।
यस्येदृश्यच्युते भक्तिः सर्वलोकैकभर्तरि ॥ ४८ ॥
अहो वयं ह्यद्य पवित्रकीर्ते
     त्वयैव नाथेन मुकुन्दनाथाः ।
य उत्तमश्लोकतमस्य विष्णोः
     ब्रह्मण्यदेवस्य कथां व्यनक्ति ॥ ४९ ॥
नात्यद्भु्तमिदं नाथ तवाजीव्यानुशासनम् ।
प्रजानुरागो महतां प्रकृतिः करुणात्मनाम् ॥ ५० ॥
अद्य नस्तमसः पारः त्वयोपासादितः प्रभो ।
भ्राम्यतां नष्टदृष्टीनां कर्मभिर्दैवसंज्ञितैः ॥ ५१ ॥
नमो विवृद्धसत्त्वाय पुरुषाय महीयसे ।
यो ब्रह्म क्षत्रमाविश्य बिभर्तीदं स्वतेजसा ॥ ५२ ॥

श्रीमैत्रेयजी कहते हैं—महाराज पृथुका यह भाषण सुनकर देवता, पितर और ब्राह्मण आदि सभी साधुजन बड़े प्रसन्न हुए और ‘साधु ! साधु !’ यों कहकर उनकी प्रशंसा करने लगे ॥ ४५ ॥ उन्होंने कहा, ‘पुत्रके द्वारा पिता पुण्यलोकोंको प्राप्त कर लेता है’ यह श्रुति यथार्थ है; पापी वेन ब्राह्मणोंके शापसे मारा गया था; फिर भी इनके पुण्यबलसे उसका नरकसे निस्तार हो गया ॥ ४६ ॥ इसी प्रकार हिरण्यकशिपु भी भगवान्‌की निन्दा करनेके कारण नरकोंमें गिरनेवाला ही था कि अपने पुत्र प्रह्लादके प्रभावसे उन्हें पार कर गया ॥ ४७ ॥ वीरवर पृथुजी ! आप तो पृथ्वीके पिता ही हैं और सब लोकोंके एकमात्र स्वामी श्रीहरिमें भी आपकी ऐसी अविचल भक्ति है, इसलिये आप अनन्त वर्षोंतक जीवित रहें ॥ ४८ ॥ आपका सुयश बड़ा पवित्र है; आप उदारकीर्ति ब्रह्मण्यदेव श्रीहरिकी कथाओंका प्रचार करते हैं। हमारा बड़ा सौभाग्य है; आज आपको अपने स्वामीके रूपमें पाकर हम अपनेको भगवान्‌के ही राज्यमें समझते हैं ॥ ४९ ॥ स्वामिन् ! अपने आश्रितोंको इस प्रकारका श्रेष्ठ उपदेश देना आपके लिये कोई आश्चर्यकी बात नहीं है; क्योंकि अपनी प्रजाके ऊपर प्रेम रखना तो करुणामय महापुरुषोंका स्वभाव ही होता है ॥ ५० ॥ हमलोग प्रारब्धवश विवेकहीन होकर संसारारण्यमें भटक रहे थे; सो प्रभो ! आज आपने हमें इस अज्ञानान्धकारके पार पहुँचा दिया ॥ ५१ ॥ आप शुद्ध सत्त्वमय परमपुरुष हैं, जो ब्राह्मणजातिमें प्रविष्ट होकर क्षत्रियोंकी और क्षत्रियजातिमें प्रविष्ट होकर ब्राह्मणोंकी तथा दोनों जातियोंमें प्रतिष्ठित होकर सारे जगत् की  रक्षा करते हैं। हमारा आपको नमस्कार है ॥ ५२ ॥

इति श्रीमद्‌भागवते महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां चतुर्थस्कन्धे एकविंशोऽध्यायः ॥ २१ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌺💖🌹🥀जय श्री हरि: 🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    राधा रमणम् हरे !! हरे !!
    नारायण नारायण हरि: !! हरि: !!

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