॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
चतुर्थ स्कन्ध – पचीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०१)
पुरञ्जनोपाख्यानका प्रारम्भ
मैत्रेय उवाच –
इति सन्दिश्य भगवान् बार्हिषदैरभिपूजितः ।
पश्यतां राजपुत्राणां तत्रैवान्तर्दधे हरः ॥ १ ॥
रुद्रगीतं भगवतः स्तोत्रं सर्वे प्रचेतसः ।
जपन्तस्ते तपस्तेपुः वर्षाणां अयुतं जले ॥ २ ॥
प्राचीनबर्हिषं क्षत्तः कर्मस्वासक्तमानसम् ।
नारदोऽध्यात्मतत्त्वज्ञः कृपालुः प्रत्यबोधयत् ॥ ३ ॥
श्रेयस्त्वं कतमद्राजन् कर्मणात्मन ईहसे ।
दुःखहानिः सुखावाप्तिः श्रेयस्तन्नेह चेष्यते ॥ ४ ॥
राजोवाच –
न जानामि महाभाग परं कर्मापविद्धधीः ।
ब्रूहि मे विमलं ज्ञानं येन मुच्येय कर्मभिः ॥ ५ ॥
गृहेषु कूटधर्मेषु पुत्रदारधनार्थधीः ।
न परं विन्दते मूढो भ्राम्यन् संसारवर्त्मसु ॥ ॥ ६ ॥
नारद उवाच –
भो भोः प्रजापते राजन् पशून् पश्य त्वयाध्वरे ।
संज्ञापिताञ्जीवसङ्घान् निर्घृणेन सहस्रशः ॥ ७ ॥
एते त्वां सम्प्रतीक्षन्ते स्मरन्तो वैशसं तव ।
सम्परेतमयःकूटैः छिन्दति उत्थितमन्यवः ॥ ८ ॥
अत्र ते कथयिष्येऽमुं इतिहासं पुरातनम् ।
पुरञ्जनस्य चरितं निबोध गदतो मम ॥ ९ ॥
श्रीमैत्रेयजी कहते हैं—विदुरजी ! इस प्रकार भगवान् शङ्कर ने प्रचेताओं को उपदेश दिया। फिर प्रचेताओं ने शङ्कर जी की बड़े भक्तिभाव से पूजा की। इसके पश्चात् वे उन राजकुमारों के सामने ही अन्तर्धान हो गये ॥ १ ॥ सब-के-सब प्रचेता जलमें खड़े रहकर भगवान् रुद्र के बताये स्तोत्र का जप करते हुए दस हजार वर्षतक तपस्या करते रहे ॥ २ ॥ इन दिनों राजा प्राचीनबर्हि का चित्त कर्मकाण्ड में बहुत रम गया था। उन्हें अध्यात्मविद्या-विशारद परम कृपालु नारदजीने उपदेश दिया ॥ ३ ॥ उन्होंने कहा कि ‘राजन् ! इन कर्मोंके द्वारा तुम अपना कौन-सा कल्याण करना चाहते हो ? दु:खके आत्यन्तिक नाश और परमानन्द की प्राप्तिका नाम कल्याण है; वह तो कर्मोंसे नहीं मिलता’ ॥ ४ ॥
राजाने कहा—महाभाग नारदजी ! मेरी बुद्धि कर्ममें फँसी हुई है, इसलिये मुझे परम कल्याणका कोई पता नहीं है। आप मुझे विशुद्ध ज्ञानका उपदेश दीजिये, जिससे मैं इस कर्मबन्धन से छूट जाऊँ ॥ ५ ॥ जो पुरुष कपटधर्ममय गृहस्थाश्रम में ही रहता हुआ पुत्र, स्त्री और धन को ही परम पुरुषार्थ मानता है, वह अज्ञानवश संसारारण्य में ही भटकता रहने के कारण उस परम कल्याण को प्राप्त नहीं कर सकता ॥ ६ ॥
श्रीनारदजीने कहा—देखो, देखो, राजन् ! तुमने यज्ञमें निर्दयतापूर्वक जिन हजारों पशुओं की बलि दी है—उन्हें आकाश में देखो ॥ ७ ॥ ये सब तुम्हारे द्वारा प्राप्त हुई पीड़ाओं को याद करते हुए बदला लेनेके लिये तुम्हारी बाट देख रहे हैं। जब तुम मरकर परलोक में जाओगे, तब ये अत्यन्त क्रोधमें भरकर तुम्हें अपने लोहे के-से सींगों से छेदेंगे ॥ ८ ॥ अच्छा, इस विषय में मैं तुम्हें एक प्राचीन उपाख्यान सुनाता हूँ। वह राजा पुरञ्जनका चरित्र है, उसे तुम मुझसे सावधान होकर सुनो ॥ ९ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
🌺💟🌹🥀जय श्री हरि: !! 🙏
जवाब देंहटाएंश्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायण वासुदेव: !!
नारायण नारायण नारायण नारायण