शुक्रवार, 5 दिसंबर 2025

श्रीमद्भागवतमहापुराण पंचम स्कन्ध - दूसरा अध्याय..(पोस्ट०१)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण 
पंचम स्कन्ध – दूसरा अध्याय..(पोस्ट०१)

आग्नीध्र-चरित्र

श्रीशुक उवाच

एवं पितरि सम्प्रवृत्ते तदनुशासने वर्तमान आग्नीध्रो जम्बूद्वीपौकसः प्रजा औरसवद्धर्मावेक्षमाणः पर्यगोपायत् ||१||
स च कदाचित्पितृलोककामः सुरवरवनिताक्रीडाचलद्रोण्यां भगवन्तं विश्वसृजां पतिमाभृतपरिचर्योपकरण आत्मैकाग्र्येण तपस्व्याराधयां बभूव ||२||
तदुपलभ्य भगवानादिपुरुषः सदसि गायन्तीं पूर्वचित्तिं नामाप्सरसमभियापयामास ||३||
सा च तदाश्रमोपवनमतिरमणीयं विविधनिबिडविटपिविटपनिकरसंश्लिष्टपुरट लतारूढस्थलविहङ्गममिथुनैः प्रोच्यमानश्रुतिभिः प्रतिबोध्यमानसलिलकुक्कुटकारण्डवकलहंसादिभिर्विचित्रमुपकूजितामलजलाशयकमलाकरमुपबभ्राम ||४||

श्रीशुकदेवजी कहते हैं—पिता प्रियव्रत के इस प्रकार तपस्या में संलग्न हो जानेपर राजा आग्नीध्र उनकी आज्ञाका अनुसरण करते हुए जम्बूद्वीपकी प्रजाका धर्मानुसार पुत्रवत् पालन करने लगे ॥ १ ॥ एक बार वे पितृलोक की कामनासे सत्पुत्रप्राप्तिके लिये पूजाकी सब सामग्री जुटाकर सुर-सुन्दरियों के क्रीडास्थल मन्दराचलकी एक घाटीमें गये और तपस्या में तत्पर होकर एकाग्र-चित्तसे प्रजापतियों के पति श्रीब्रह्माजीकी आराधना करने लगे ॥ २ ॥ आदिदेव भगवान्‌ ब्रह्माजीने उनकी अभिलाषा जान ली। अत: अपनी सभाकी गायिका पूर्वचित्ति नामकी अप्सराको उनके पास भेज दिया ॥ ३ ॥ आग्नीध्र जी के आश्रमके पास एक अति रमणीय उपवन था। वह अप्सरा उसीमें विचरने लगी। उस उपवनमें तरह-तरहके सघन तरुवरों की शाखाओं पर स्वर्णलताएँ फैली हुई थीं। उनपर बैठे हुए मयूरादि कई प्रकारके स्थलचारी पक्षियोंके जोड़े सुमधुर बोली बोल रहे थे। उनकी षड्जादि स्वरयुक्त ध्वनि सुनकर सचेत हुए जलकुक्कुट, कारण्डव एवं कलहंस आदि जलपक्षी भाँति- भाँति से कूजने लगते थे। इससे वहाँ के कमलवन से सुशोभित निर्मल सरोवर गूँजने लगते थे ॥ ४ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से


1 टिप्पणी:

  1. 🌹💖🥀 जय श्रीकृष्ण 🙏
    ॐ श्री परमात्मने नमः
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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श्रीमद्भागवतमहापुराण पंचम स्कन्ध - दूसरा अध्याय..(पोस्ट०३)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  पंचम स्कन्ध – दूसरा अध्याय..(पोस्ट०३) आग्नीध्र-चरित्र का त्वं चिकीर्षसि च किं मुनिवर्य शैले ...