॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
नवम स्कन्ध –बाईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०२)
पाञ्चाल, कौरव और मगधदेशीय राजाओं के वंश का वर्णन
ततश्च क्रोधनस्तस्मात् देवातिथिरमुष्य च ।
ऋष्यस्तस्य दिलीपोऽभूत् प्रतीपस्तस्य चात्मजः ॥ ११ ॥
देवापिः शान्तनुस्तस्य बाह्लीक इति चात्मजाः ।
पितृराज्यं परित्यज्य देवापिस्तु वनं गतः ॥ १२ ॥
अभवत् शन्तनू राजा प्राङ्महाभिषसंज्ञितः ।
यं यं कराभ्यां स्पृशति जीर्णं यौवनमेति सः ॥ १३ ॥
शान्तिमाप्नोति चैवाग्र्यां कर्मणा तेन शन्तनुः ।
समा द्वादश तद्राज्ये न ववर्ष यदा विभुः ॥ १४ ॥
शन्तनुर्ब्राह्मणैरुक्तः परिवेत्तायमग्रभुक् ।
राज्यं देह्यग्रजायाशु पुरराष्ट्रविवृद्धये ॥ १५ ॥
एवमुक्तो द्विजैर्ज्येष्ठं छन्दयामास सोऽब्रवीत् ।
तन्मंत्रिप्रहितैर्विप्रैः वेदाद् विभ्रंशितो गिरा ॥ १६ ॥
वेदवादातिवादान् वै तदा देवो ववर्ष ह ।
देवापिर्योगमास्थाय कलापग्राममाश्रितः ॥ १७ ॥
सोमवंशे कलौ नष्टे कृतादौ स्थापयिष्यति ।
बाह्लीकात्सोमदत्तोऽभूद् भूरिर्भूरिश्रवास्ततः ॥ १८ ॥
शलश्च शन्तनोरासीद् गंगायां भीष्म आत्मवान् ।
सर्वधर्मविदां श्रेष्ठो महाभागवतः कविः ॥ १९ ॥
वीरयूथाग्रणीर्येन रामोऽपि युधि तोषितः ।
शन्तनोर्दाशकन्यायां जज्ञे चित्रांगदः सुतः ॥ २० ॥
विचित्रवीर्यश्चावरजो नाम्ना चित्रांगदो हतः ।
यस्यां पराशरात्साक्षाद् अवतीर्णो हरेः कला ॥ २१ ॥
वेदगुप्तो मुनिः कृष्णो यतोऽहं इदमध्यगाम् ।
हित्वा स्वशिष्यान् पैलादीन् भगवान् बादरायणः ॥ २२ ॥
मह्यं पुत्राय शान्ताय परं गुह्यमिदं जगौ ।
विचित्रवीर्योऽथोवाह काशीराजसुते बलात् ॥ २३ ॥
स्वयंवराद् उपानीते अम्बिकाम्बालिके उभे ।
तयोरासक्तहृदयो गृहीतो यक्ष्मणा मृतः ॥ २४ ॥
क्षेत्रेऽप्रजस्य वै भ्रातुः मात्रोक्तो बादरायणः ।
धृतराष्ट्रं च पाण्डुं च विदुरं चाप्यजीजनत् ॥ २५ ॥
अयुतका क्रोधन, क्रोधनका देवातिथि,
देवातिथिका ऋष्य,
ऋष्यका दिलीप और दिलीपका पुत्र प्रतीप हुआ ॥
११ ॥ प्रतीपके तीन पुत्र थे—देवापि, शन्तनु और बाह्लीक। देवापि अपना पैतृक राज्य छोडक़र वनमें
चला गया ॥ १२ ॥ इसलिये उसके छोटे भाई शन्तनु राजा हुए। पूर्वजन्ममें शन्तनुका नाम
महाभिष था। इस जन्ममें भी वे अपने हाथोंसे जिसे छू देते थे,
वह बूढ़ेसे जवान हो जाता था ॥ १३ ॥ उसे परम
शान्ति मिल जाती थी। इसी करामात के कारण उनका नाम ‘शन्तनु’ हुआ। एक बार शन्तनुके राज्यमें बारह वर्षतक
इन्द्रने वर्षा नहीं की। इसपर ब्राह्मणोंने शन्तनुसे कहा कि ‘तुमने अपने बड़े भाई देवापिसे पहले ही विवाह,
अग्निहोत्र और राजपदको स्वीकार कर लिया,
अत: तुम परिवेत्ता [1] हो;
इसीसे तुम्हारे राज्यमें वर्षा नहीं होती। अब
यदि तुम अपने नगर और राष्ट्रकी उन्नति चाहते हो तो शीघ्र-से-शीघ्र अपने बड़े भाईको राज्य लौटा दो’ ॥ १४-१५ ॥ जब ब्राह्मणोंने शन्तनुसे इस प्रकार कहा, तब उन्होंने वनमें जाकर अपने बड़े भाई
देवापिसे राज्य स्वीकार करनेका अनुरोध किया। परंतु शन्तनुके मन्त्री अश्मरातने
पहलेसे ही उनके पास कुछ ऐसे ब्राह्मण भेज दिये थे, जो वेदको दूषित करनेवाले वचनोंसे देवापिको
वेदमार्गसे विचलित कर चुके थे। इसका फल यह हुआ कि देवापि वेदोंके अनुसार
गृहस्थाश्रम स्वीकार करनेकी जगह उनकी निन्दा करने लगे। इसलिये वे राज्यके अधिकारसे
वञ्चित हो गये और तब शन्तनुके राज्यमें वर्षा हुई। देवापि इस समय भी योगसाधना कर
रहे हैं और योगियोंके प्रसिद्ध निवासस्थान कलापग्राममें रहते हैं ॥ १६-१७ ॥ जब कलियुगमें चन्द्रवंशका नाश हो जायगा, तब सत्ययुगके प्रारम्भमें वे फिर उसकी
स्थापना करेंगे। शन्तनुके छोटे भाई बाह्लीकका पुत्र हुआ सोमदत्त। सोमदत्तके तीन
पुत्र हुए—भूरि, भूरिश्रवा और शल। शन्तनुके द्वारा गङ्गाजीके
गर्भसे नैष्ठिक ब्रह्मचारी भीष्मका जन्म हुआ। वे समस्त धर्मज्ञोंके सिरमौर,
भगवान्के परम प्रेमी भक्त और परम ज्ञानी थे
॥ १८-१९ ॥ वे संसारके समस्त वीरोंके अग्रगण्य नेता थे। औरोंकी तो बात ही क्या,
उन्होंने अपने गुरु भगवान् परशुरामको भी
युद्धमें सन्तुष्ट कर दिया था। शन्तनुके द्वारा दाशराजकी कन्या [2] के गर्भसे दो पुत्र हुए—चित्राङ्गद और विचित्रवीर्य। चित्राङ्गदको चित्राङ्गद नामक
गन्धर्वने मार डाला। इसी दाशराजकी कन्या सत्यवतीसे पराशरजीके द्वारा मेरे पिता,
भगवान् के कलावतार स्वयं भगवान्
श्रीकृष्णद्वैपायन व्यासजी अवतीर्ण हुए थे। उन्होंने वेदोंकी रक्षा की। परीक्षित्
! मैंने उन्हींसे इस श्रीमद्भागवत-पुराणका अध्ययन किया था। यह पुराण परम गोपनीय—अत्यन्त रहस्यमय है। इसीसे मेरे पिता भगवान् व्यासजीने
अपने पैल आदि शिष्योंको इसका अध्ययन नहीं कराया, मुझे ही इसके योग्य अधिकारी समझा। एक तो मैं
उनका पुत्र था और दूसरे शान्ति आदि गुण भी मुझमें विशेषरूपसे थे। शन्तनु के दूसरे
पुत्र विचित्रवीर्यने काशिराजकी कन्या अम्बिका और अम्बालिकासे विवाह किया। उन
दोनोंको भीष्मजी स्वयंवरसे बलपूर्वक ले आये थे। विचित्रवीर्य अपनी दोनों
पत्नियोंमें इतना आसक्त हो गया कि उसे राजयक्ष्मा रोग हो गया और उसकी मृत्यु हो
गयी ॥ २०—२४ ॥ माता सत्यवती के कहने से भगवान्
व्यासजी ने अपने सन्तानहीन भाईकी स्त्रियोंसे धृतराष्ट्र और पाण्डु दो पुत्र
उत्पन्न किये। उनकी दासीसे तीसरे पुत्र विदुरजी हुए ॥ २५ ॥
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[1] दाराग्निहोत्रसंयोगं कुरुते योऽग्रजे स्थिते ।
परिवेत्ता स विज्ञेय: परिवित्तिस्तु पूर्वज: ।।
अर्थात् जो पुरुष अपने बड़े भाई के रहते हुए उससे पहले ही विवाह और अग्निहोत्र का संयोग करता है, उसे परिवेत्ता जानना चाहिये और उसका बड़ा भाई ‘परिवित्ति’ कहलाता है।
अर्थात् जो पुरुष अपने बड़े भाई के रहते हुए उससे पहले ही विवाह और अग्निहोत्र का संयोग करता है, उसे परिवेत्ता जानना चाहिये और उसका बड़ा भाई ‘परिवित्ति’ कहलाता है।
[2] यह कन्या वास्तव में उपरिचरवसु के वीर्य से मछली
के गर्भसे उत्पन्न हुई थी, किन्तु दाशों (केवटों) के द्वारा
पालित होनेसे वह केवटों की कन्या कहलायी।
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से