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रविवार, 24 सितंबर 2023
# भक्तराज प्रह्लाद और ध्रुव #
# श्री राम जय राम जय जय राम #
शनिवार, 23 सितंबर 2023
मनन करने योग्य
मंगलवार, 22 अगस्त 2023
सच्चा सुधारक... गोस्वामी तुलसीदास जी (पोस्ट ०२)
सच्चा सुधारक... गोस्वामी तुलसीदास जी (पोस्ट ०१)
जय श्री कृष्ण
सोमवार, 21 अगस्त 2023
महाविद्या तारा
रविवार, 20 अगस्त 2023
यमराज के कुत्ते
ऋग्वेद में आया है—
अति
द्रव सारमेयौ श्वानौ चतुरक्षौ शबलौ साधुना पथा ।
अथपितृन्त्सुविदत्राँ
उपेहि यमेन ये सधमादं मदन्ति ||
( ऋग्वेद-सं० १० । १४ ।
१० }
हे अग्निदेव ! प्रेतों के बाधक यमराज के
दोनों कुत्तों का उल्लङ्घन करके इस प्रेत को ले जाइये और ले जा करके यम के साथ जो
पितर प्रसन्नतापूर्वक विहार कर रहे हैं, उन अच्छे
ज्ञानी पितरों के पास पहुँचा दीजिये; क्योंकि ये दोनों
कुत्ते देवसुनी शर्माके लड़के हैं और इनकी दो नीचे और दो ऊपर चार आँखें हैं ।
यौ ते श्वानं यम रक्षितारौ चतुरक्षौ
पथिरक्षी नृचक्षसौ ।
ताभ्यामेनं परि देहि राजन्त्स्वस्ति चास्मा
अनमीत्रं च धेहि ॥
(ऋग्वेदसं० १० । १४ ।
११ )
हे राजन् ! यस आपके घर की रखवाली
करनेवाले आपके मार्ग की रक्षा करने वाले श्रुति-स्मृति-पुराणों के विद्वानों द्वारा
ख्यापित चार आँखवाले अपने कुत्तों से इसकी रक्षा कीजिये तथा इसे नीरोग बनाइये |
उरुणसावसुतृपा
उदुम्बलौ यमस्य दूतौ चरतो जनाँ अनु ।
तावस्मभ्यं
दृशये सूर्याय पुनर्दातामसुमद्येह भद्रम् ॥
(ऋग्वेद-सं० १० । १४ । १२ )
यम के दूत दोनों कुत्ते लोगों को
देखते हुए सर्वत्र घूमते हैं | बहुत दूर से सूंघकर
पता लगा लेते हैं और दूसरे प्राण से तृप्त होते हैं, बड़े
बलवान् है । वे दोनों दूत सूर्य के दर्शन के लिये हमें शक्ति दें ।
......गीता प्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “परलोक और पुनर्जन्मांक” पुस्तक से (कोड 572)
अन्नदान न करने के कारण ब्रह्मलोक जाने के बाद भी,अपने मुर्दे का मांस खाना पड़ा
विदर्भ
देश के राजा श्वेत बड़े अच्छे पुरुष थे । राज्य से वैराग्य होने पर उन्होंने अरण्य
में जाकर तक तप किया और तप के फलस्वरूप उन्हें ब्रह्मलोक की प्राप्ति हुई;
परंतु
उन्होंने जीवन में कभी किसी को भोजन दान नहीं किया था। इससे वे ब्रह्मलोक में भी
भूख से पीड़ित रहे । ब्रह्माजी ने उनसे कहा-'तुमने
किसी भिक्षुक को कभी भिक्षा नहीं दी । विविध भोगों से केवल अपने शरीर को ही पाला-पोसा
और तप किया । तप के फल से तुम मेरे लोकमें
आ गये । तुम्हारा मृत शरीर धरतीपर पड़ा है। वह
पुष्ट तथा अक्षय कर दिया गया है । तुम
उसीका मांस खाकर भूख मिटाओ । अगस्त्य
ऋषि के मिलने पर उस घृणित भोजन से छूट सकोगे ।"
उन्हीं श्वेत राजा को ब्रह्मलोक से आकर अपने शव का मांस खाना पड़ता था । यह अन्नदान न देने का फल है । फिर एक दिन उन्हें अगस्त्य ऋषि मिले । तब उनको इस अत्यन्त घृणित कार्य से छुटकारा मिला |
अतएव यहाँ अपनी सामर्थ्य
के अनुसार दान अवश्य करना चाहिये । यहाँ का
दिया हुआ ही----परलोक में
या पुनर्जन्म होने पर
प्राप्त होता है । यह आवश्यक नहीं है कि कोई इतने परिमाण में दान करे | जिसके पास
जो हो-उसी
में
से यथाशक्ति कुछ दान दिया करे ।
राजा श्वेत हुए अति वैभवशाली तपोनिष्ठ मतिमान ।
पर
न किया था कभी उन्होंने जीवन में भोजन का दान ॥
क्षुधा भयानक से पीड़ित वे आले प्रतिदिन चढ़े विमान ।
धरतीपर खाते स्वमांस अपने ही शवका घृणित महान ।।
----गीता
प्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “परलोक और पुनर्जन्मांक“ पुस्तक से (कोड 572)
शुक्रवार, 18 अगस्त 2023
श्राद्ध-तत्त्व - प्रश्नोत्तरी
श्रीहरि :
प्रश्न - श्राद्ध किसे कहते हैं ?
उत्तर ---- श्रद्धा से किया जानेवाला
वह कार्य,
जो पितरों के निमित्त किया जाता है, श्राद्ध
कहलाता है ।
प्रश्न – कई लोग कहते हैं कि श्राद्धकर्म
असत्य है और इसे ब्राह्मणोंने ही अपने लेने-खाने के लिये बनाया है । इस विषयपर
आपका क्या विचार है ?
उत्तर - श्राद्धकर्म पूर्णरूपेण
आवश्यक कर्म हैं और शास्त्रसम्मत है । हाँ, वर्तमानकाल
में लोगों में ऐसी रीति ही चल पड़ी है कि जिस बात को वे समझ जायें, वह तो उनके लिये सत्य हैं; परंतु जो विषय उनकी समझ के
बाहर हो, उने वे गलत कहने लगते हैं ।
कलिकाल के लोग प्रायः स्वार्थी हैं ।
उन्हें दूसरे का सुखी होना सुहाता नहीं । स्वयं तो मित्रों के बड़े-बड़े भोज - निमन्त्रण
स्वीकार करते हैं, मित्रोंको अपने घर
भोजनके लिये निमन्त्रित करते हैं, रात-दिन निरर्थक व्यय में
आनन्द मनाते हैं; परंतु श्राद्धकर्म में एक ब्राह्मण ( जो हम
से बड़ी जाति का है और पूजनीय है ) को भोजन कराने में भार अनुभव करते हैं । जिन
माता - पिताकी जीवनभर सेवा करके भी ऋण नहीं चुकाया जा सकता, उनके
पीछे भी उनके लिये श्राद्धकर्म करते रहना आवश्यक है ।
प्रश्न – श्राद्ध करने से क्या लाभ
होता है ?
- मनुष्यमात्र के लिये शास्त्रों में
देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण – ये तीन ऋण बताये गये हैं ।
इनमें श्राद्ध के द्वारा पितृ ऋण उतारा जाता है ।
विष्णुपुराण में कहा गया है कि
श्राद्ध से तृप्त होकर पितृगण समस्त कामनाओं को पूर्ण कर देते हैं । '
( ३ | १५ | ५१ ) इसके
अतिरिक्त आद्धकर्त्ता पुरुष से विश्वेदेवगण, पितृगण, मातामह तथा कुटुम्बीजन - सभी संतुष्ट रहते हैं । ( ३ । १५ । ५४) पितृपक्ष
(आश्विनका कृष्णपक्ष ) में तो पितृगण स्वयं श्राद्ध प्रहण करने आते हैं तथा
श्राद्ध मिलने पर प्रसन्न होते हैं और न मिलने पर निराश हो शाप देकर लौट जाते हैं
। विष्णुपुराण सें पितृगण कहते हैं – “हमारे कुलमें क्या कोई ऐसा बुद्धिमान् धन्य
पुरुष उत्पन्न होगा, जो धन के लोभ को त्याग कर हमारे लिये पिण्डदान करेगा | १ ( ३ | १४ |
विष्णुपुराण में श्राद्धकर्म के
सरल-से-सरल उपाय गये हैं । अतः इतनी सरलता से होनेवाले कार्य को त्यागना नहीं
चाहिये ।
प्रश्न – पितरोंको श्राद्ध कैसे
प्राप्त होता है ?
उत्तर - यदि हम चिट्ठीपर नाम-पता
लिखकर बक्स में डाल दें तो वह अभीष्ट पुरुष को, वह
जहाँ अवश्य मिल जायगी । इसी प्रकार जिनका नामोच्चारण किया गया है, उन पितरों को, वे जिस योनि में भी हों, श्राद्ध
प्राप्त हो जाता है । जिस प्रकार सभी पत्र पहले बड़े डाकघर में एकत्रित होते हैं और फिर उनका अलग
विभाग होकर उन्हें अभीष्ट स्थानों में पहुँचाया जाता है, उसी
प्रकार अर्पित पदार्थ का सूक्ष्म अंश सूर्य- रश्मियों के द्वारा सूर्यलोक में
पहुँचता है और वहाँ से बँटवारा होता है तथा अभीष्ट पितरों को प्राप्त होता है ।
पितृपक्ष में विद्वान् ब्राह्मणों के
द्वारा आवाहन जानेपर पितृगण स्वयं उनके शरीर में सूक्ष्मरूप से स्थित हो जाते हैं
। अन्नका स्थूल अंश ब्राह्मण खाता है और सूक्ष्म अंश को पितर ग्रहण करते हैं ।
प्रश्न -- यदि पितर पशु-योनि में हों,
तो उन्हें योनि के योग्य आहार हमारे द्वारा कैसे प्राप्त होगा ?
उत्तर—विदेशमें हम जितने रुपये भेजें,उतने
ही रुपयोंका डालर आदि ( देशके अनुसार विभिन्न सिक्के ) होकर अभीष्ट व्यक्ति को
प्राप्त हो जाते हैं । उसी प्रकार
श्रद्धापूर्वक अर्पित अन्न पितृगण को, वे जैसे आहार के योग्य होते हैं,
वैसा ही होकर उन्हें मिलता है |
प्रश्न- यदि पितर परमधाम में हों,
जहाँ आनन्द ही आनन्द है, वहाँ तो उन्हें किसी
वस्तु की भी आवश्यकता नहीं है । फिर उनके
लिये किया गया श्राद्ध क्या व्यर्थ चला जायगा ?
उत्तर—नहीं । जैसे,
हम दूसरे शहर में अभीष्ट व्यक्ति को कुछ रुपये भेजते हैं, परंतु
रुपये वहाँ पहुँचने पर पता चले कि अभीष्ट व्यक्ति तो मर चुका है, तब वह रुपये हमारे ही नाम होकर हमें ही मिल जायेंगे
।
ऐसे ही परमधामवासी पितरोंके निमित्त
किया गया श्राद्ध पुण्परूप से हमें ही मिल जाएगा अतः हमारा लाभ तो सब प्रकारसे ही
होगा ।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः !
.....गीता प्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “परलोक और पुनार्जन्मांक” पुस्तक (कोड ५७२) से
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