|| ॐ श्री परमात्मने नम: ||
नारद-राम-संवाद
अरण्यकाण्ड में ऐसा वर्णन आया है‒श्रीरामजी लक्ष्मणजी के सहित,सीताजीके वियोग में घूम रहे थे । वे घूमते-घूमते पम्पा सरोवर पहुँच गये । तो नारदजीके मनमें बात आयी कि मेरे शापको स्वीकार करके भगवान् स्त्री-वियोगमें घूम रहे हैं । उन्होंने देखा कि अभी बड़ा सुन्दर मौका है, एकान्त है । इस समय जाकर पूछें, बात करें । नारदजीने भगवान् को ऐसा शाप दिया कि आपने मेरा विवाह नहीं होने दिया तो आप भी स्त्री के लिये रोते फिरोगे । भगवान् ने शाप स्वीकार कर लिया, परंतु नारदजीका अहित नहीं होने दिया ।
यहाँ नारदजीने पूछा‒‘महाराज ! उस समय आपने मेरा विवाह क्यों नहीं होने दिया ?’ तो भगवान्ने कहा‒‘भैया ! एक मेरे ज्ञानी भक्त होते हैं और दूसरे छोटे ‘दास’ भक्त होते हैं; परंतु उन दासोंकी, प्यारे भक्तोंकी मैं रखवाली करता हूँ ।’
करउँ सदा तिन्ह कै रखवारी ।
जिमि बालक राखइ महतारी ॥
मोरे प्रौढ़ तनय सम ग्यानी ।
बालक सुत सम दास अमानी
………………..(मानस, अरण्यकाण्ड, दोहा ४३ । ५, ८)
ज्ञानी भक्त बड़े बेटे हैं । अमानी भक्त छोटे बालकके समान हैं । जैसे, छोटे बालकका माँ विशेष ध्यान रखती है कि यह कहीं साँप, बिच्छू, काँटा न पकड़ ले,कहीं गिर न जाय । वह उसकी विशेष निगाह रखती है, ऐसे ही मैं अपने दासोंकी निगाह रखता हूँ । माँ प्यारसे बच्चेको खिलाती-पिलाती है, प्यार करती है, गोदमें लेती है । परंतु बच्चेको नुकसानवाली कोई बात नहीं करने देती । अपने मनकी बात न करने देनेसे बच्चा कभी-कभी क्या करता है कि गुस्सेमें आकर माँके स्तनको मुँहमें लेते समय काट लेता है, फिर भी माँ उसके मनकी बात नहीं होने देती । माँ इतनी हितैषिणी होती है कि उसका स्तन काटनेपर भी बालकपर स्नेह रखती है, गुस्सा नहीं करती । वह तो फिर भी दूध पिलाती है । वह उसकी परवाह नहीं करती और अहित नहीं होने देती ।
राम ! राम !! राम !!!
(शेष आगामी पोस्ट में )
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की “मानस में नाम-वन्दना” पुस्तकसे