|| जय श्रीहरि ||
हम जैसा चाहते हैं, वैसे ही भगवान् हमें मिलते हैं । दो भक्त थे । एक भगवान् श्रीराम का भक्त था, दूसरा भगवान् श्रीकृष्ण का । दोनों अपने-अपने भगवान् (इष्टदेव)-को श्रेष्ठ बतलाते थे । एक बार वे जंगलमें गये । वहाँ दोनों भक्त अपने-अपने भगवान् को पुकारने लगे । उनका भाव यह था कि दोनों में से जो भगवान् शीघ्र आ जायँ वही श्रेष्ठ हैं । भगवान् श्रीकृष्ण शीघ्र प्रकट हो गये । इससे उनके भक्त ने उन्हें श्रेष्ठ बतला दिया । थोड़ी देर में भगवान् श्रीराम भी प्रकट हो गये । इस पर उनके भक्त ने कहा कि आपने मुझे हरा दिया; भगवान् श्रीकृष्ण तो पहले आ गये, पर आप देरसे आये, जिससे मेरा अपमान हो गया ! भगवान् श्रीराम ने अपने भक्तसे पूछा‒‘तूने मुझे किस रूपमें याद किया था ?’ भक्त बोला‒‘राजाधिराज के रूपमें ।’ तब भगवान् श्रीराम बोले‒‘बिना सवारीके राजाधिराज कैसे आ जायँगे । पहले सवारी तैयार होगी, तभी तो वे आयँगे !’ कृष्ण-भक्तसे पूछा गया तो उसने कहा‒‘मैंने तो अपने भगवान्को गाय चरानेवाले के रूपमें याद किया था कि वे यहीं जंगल में गाय चराते होंगे ।’ इसीलिये वे पुकारते ही तुरन्त प्रकट हो गये ।
(‒गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित ‘लक्ष्य अब दूर नहीं’ पुस्तक से)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें