गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

जीवसम्बन्धी प्रश्नोत्तर (पोस्ट 06)



ॐ श्रीमन्नारायणाय नम:

जीवसम्बन्धी प्रश्नोत्तर (पोस्ट 06)
(लेखक: श्री जयदयालजी गोयन्दका)

ऊर्ध्व गति

श्रुति कहती है-

ते य एवमेतद्विदुः ये चामी अरण्ये श्रद्धाँ सत्यमुपासते तेऽर्च्चिरभिसम्भवन्ति, अर्चिषोऽहरह्न, आपूर्य्यमाणपक्षमापूर्य्यमाणपक्षाद्यान्‌ षण्मासानुदड्‌ङादित्य एति मासेभ्यो देवलोकं देवलोकादादित्यमादित्याद्वेद्युतं, तान्‌ वैद्युतान्‌ पुरुषो मानस एत्य ब्रह्मलोकान्‌ गमयति ते ते ब्रह्मलोकेषु पराः। परावतो वसन्ति तेषां न पुनरावृत्तिः॥
………( बृहदारण्य उ० २ । ६ )

जिनको ज्ञान होता है, जो अरण्य में श्रद्धायुक्त होकर सत्य की उपासना करते हैं, वे अर्चिरूप होते हैं, अर्चि से दिन रूप होते हैं, दिन से शुक्लपक्षरूप होते हैं, शुक्लपक्ष से उत्तरायणरूप होते हैं, उत्तरायण से देवलोकरूप होते हैं, देवलोक से आदित्यरूप होते हैं, आदित्य से विद्युतरूप होते हैं, यहां से अमानव पुरुष उन्हें ब्रह्मलोक में ले जाते हैं। वहां अनन्त वर्षों तक वह रहते हैं, उनको वापस नहीं लौटना पड़ता ।यह देवयान मार्ग है । एवं--

अथ ये यज्ञेन दानेन तपसा लोकाञ्जयन्ति ते धूममभिसम्भवन्ति धूमाद्रात्रिँ रात्रेरपक्षीयमाणपक्षमपक्षीयमाणपक्षाद्यान्‌ षण्मासान्‌ दक्षिणाऽऽदित्य एति मासेभ्यः पितृलोकं पितृलोकाञ्चन्द्रं ते चन्द्रं प्राप्यान्नं भवन्ति ताँस्तत्र देवा यथा सोमँराजाननाप्यायस्वापक्षीयस्त्वेत्येवमनाँस्तत्र भक्षयन्ति.....।

……..( बृहदारण्यक उ० २ । ६ )


जो सकाम भाव से यज्ञ-दान तथा तपद्वारा लोकों पर विजय प्राप्त करते हैं, वे धूम को प्राप्त होते हैं, धूम से रात्रिरूप होते हैं, रात्रि से कृष्णपक्षरूप होते हैं, कृष्णपक्ष से दक्षिणायन को प्राप्त होते हैं, दक्षिणायन से पितृलोक को और वहां से चन्द्रलोक को प्राप्त होते हैं। चन्द्रलोक प्राप्त होनेपर वे अन्नरूप होते हैं...और देवता उनको भक्षण करते हैं।यहां अन्नहोने और भक्षणकरनेसे यह मतलब है कि वे देवताओं की खाद्य वस्तु में प्रविष्ट होकर उनके द्वारा खाये जाते हैं और फिर उनसे देवरूप में उत्पन्न होते हैं। अथवा अन्नशब्द से उन जीवों को देवताओं का आश्रयी समझना चाहिये। नौकर को भी अन्न कहते हैं, सेवा करने वाले पशुओं को भी अन्न कहते हैं-- "पशवः अन्नम्‌" आदि वाक्यों से यह सिद्ध है। वे देवताओं के नौकर होने से अपने सुखों से वञ्चित नहीं हो सकते। यह पितृयान मार्ग है।

शेष आगामी पोस्ट में ..........
................००३. ०८. फाल्गुन कृ०११ सं०१९८५. कल्याण (पृ०७९३)




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