गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019

जीवसम्बन्धी प्रश्नोत्तर (पोस्ट 07)




ॐ श्रीमन्नारायणाय नम:

जीवसम्बन्धी प्रश्नोत्तर (पोस्ट 07)
(लेखक: श्री जयदयालजी गोयन्दका)

ऊर्ध्व गति

ये धूम, रात्रि और अर्चि, दिन नामक भिन्न भिन्न लोकों के अभिमानी देवता हैं, जिनका रूप भी उन्हीं नामों के अनुसार है। जीव इन देवताओं के समान रूप को प्राप्तकर क्रमशः आगे बढ़ता है। इनमेंसे अर्चिमार्गवाला प्रकाशमय लोकोंके मार्गसे प्रकाशपथके अभिमानी देवताओंद्वारा ले जाया जाकर क्रमशः विद्युत लोकतक पहुंचकर अमानव पुरुषके द्वारा बड़े सम्मानके साथ भगवान्‌ के सर्वोत्तम दिव्य परमधाममें पहुंच जाता है। इसीको ब्रह्मोपासक ब्रह्मलोक का शेष भाग-सर्वोच्च गति, श्रीकृष्ण के उपासक दिव्य गोलोक, श्रीराम के उपासक दिव्य साकेतलोक, शैव शिवलोक, जैन मोक्षशिला, मुसलमान सातवाँ आसमान और ईसाई स्वर्ग कहते हैं। 

इस दिव्य धाम में पहुंचने वाला महापुरुष सारे लोकों और मार्गों को लाँघता हुआ एक प्रकाशमय दिव्य स्थानमें स्थित होता है, जहां उसमें सभी सिद्धियां और सभी प्रकार की शक्तियां प्राप्त हो जाती हैं । वह कल्पपर्यन्त अर्थात्‌ ब्रह्मा के आयु तक वहां दिव्यभाव से रहकर अन्त में भगवान्‌ में मिल जाता है । अथवा भगवदिच्छा से भगवान्‌ के अवतार की ज्यों बन्धनमुक्त अवस्था में ही लोकहितार्थ संसार में आ भी सकता है। ऐसे ही महात्मा को कारक पुरुष कहते हैं ।

धूममार्ग के अभिमानी देवगण और इनके लोक भी सभी प्रकाशमय हैं, परन्तु इनका प्रकाश अर्चिमार्गवालोंकी अपेक्षा बहुत कम है तथा ये जीवको मायामय विषयभोग भोगनेवाले मार्गोंमें ले जाकर ऐसे लोकमें पहुंचाते हैं, जहांसे वापस लौटना पड़ता है, इसीसे यह अन्धकारके अभिमानी बतलाये गये हैं। इस मार्गमें भी जीव देवताओंकी तद्रूपताको प्राप्त करता हुआ चन्द्रमाकी रश्मियोंके रूपमें होकर उन देवताओंके द्वार ले जाया हुआ अन्तमें चन्द्रलोकको प्राप्त होता है और वहांसे भोग भोगकर पुण्यक्षय होते ही वापस लौट आता है।

शेष आगामी पोस्ट में ..........
................००३. ०८. फाल्गुन कृ०११ सं०१९८५. कल्याण (पृ०७९३)




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