||श्रीहरि||
पुत्रगीता (पोस्ट 01)
महाभारत के शान्तिपर्व में भीष्म-युधिष्ठिर-संवाद के अन्तर्गत पुत्रगीता के रूप में एक प्राचीन आख्यान आता है,
जिसमें सदा वेद-शास्त्रों के अध्ययन में तत्पर
रहनेवाले एक ब्राह्मण को उनके मेधावी नामक तत्त्वदर्शी पुत्रद्वारा ही बहुत मार्मिक
उपदेश दिये गये हैं। प्रत्येक मनुष्यका जीवन क्षणभंगुर है, मृत्यु
कभी भी बिना पूर्वसूचना के आ सकती है, अतः प्रत्येक अवस्था में
संसार की आसक्ति से बचकर धर्माचरण तथा सत्यव्रत का पालन करते रहना चाहिये, यही परमसाधन इस पुत्रगीता में बताया गया है। अत्यन्त प्रभावी ढंगसे चेतावनी
देनेवाली यह पुत्रगीता यहाँ सानुवाद प्रस्तुत की जा रही है-
युधिष्ठिर उवाच
अतिक्रामति कालेऽस्मिन् सर्वभूतक्षयावहे।
किं श्रेयः प्रतिपद्येत तन्मे ब्रूहि
पितामह॥१॥
भीष्म उवाच
अत्राप्युदाहरन्तीममितिहास पुरातनम्।।
पितुः पुत्रेण संवादं तं निबोध युधिष्ठिर॥२॥
द्विजातेः कस्यचित् पार्थ स्वाध्यायनिरतस्य
वै।
बभूव पुत्रो मेधावी मेधावी नाम नामतः
॥ ३॥
सोऽब्रवीत् पितरं पुत्रः स्वाध्यायकरणे
रतम्।
मोक्षधर्मार्थकुशलो लोकतत्त्वविचक्षणः
॥४॥
पुत्र उवाच
धीरः किंस्वित् तात कुर्यात् प्रजानन्
क्षिप्रं ह्यायुभ्रंश्यते मानवानाम्।
पितस्तदाचक्ष्व यथार्थयोगं
ममानुपूर्त्या येन धर्मं चरेयम्॥५॥
राजा युधिष्ठिर ने पूछा-पितामह!
समस्त भूतों का संहार करने वाला यह काल बराबर बीता जा रहा है,
ऐसी अवस्था में मनुष्य क्या करने से कल्याण का भागी हो सकता है?
यह मुझे बताइये ॥ १॥
भीष्मजीने कहा-युधिष्ठिर! इस विषय में ज्ञानी पुरुष पिता और पुत्र के संवादरूप इस प्राचीन इतिहास का
उदाहरण दिया करते हैं। तुम उस संवाद को ध्यान देकर सुनो ॥ २॥
कुन्तीकुमार! प्राचीन काल में एक ब्राह्मण थे, जो सदा वेदशास्त्रों के स्वाध्याय में तत्पर रहते थे। उनके एक पुत्र हुआ,
जो गुण से तो मेधावी था ही, नाम से भी मेधावी था॥
३॥
वह मोक्ष, धर्म और अर्थ में कुशल तथा लोकतत्त्वका अच्छा ज्ञाता
था। एक दिन उस पुत्र ने अपने स्वाध्यायपरायण पितासे कहा-॥४॥
पुत्र बोला-
पिताजी ! मनुष्यों की आयु तीव्र गतिसे बीती जा रही है। यह जानते
हुए धीर पुरुष को क्या करना चाहिये ? तात ! आप मुझे उस यथार्थ उपाय का उपदेश कीजिये, जिसके अनुसार
हम धर्मका आचरण कर सकें॥५॥
----गीताप्रेस
गोरखपुर द्वारा प्रकाशित ‘गीता-संग्रह’ पुस्तक (कोड
1958) से
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