गुरुवार, 18 अप्रैल 2019

यम गीता




|| श्रीहरि ||

आत्माको रथी' समझो और शरीरको 'रथ'। बुद्धिको सारथि जानो और मनको लगाम'। विवेकी पुरुष इन्द्रियोंको घोड़े' कहते हैं और विषयोंको उनके मार्ग' तथा शरीर, इन्द्रिय और मनसहित
आत्माको 'भोक्ता' कहते हैं॥ जो बुद्धिरूप सारथि अविवेकी होता है, जो अपने मनरूपी लगामको कसकर नहीं रखता, वह उत्तमपद परमात्माको नहीं प्राप्त होता, संसाररूपी गर्तमें गिरता है। परंतु जो विवेकी होता है और मनको काबूमें रखता है, वह उस परमपद को प्राप्त होता है, जिससे वह फिर जन्म नहीं लेता॥ जो मनुष्य विवेकयुक्त बुद्धिरूप सारथि से सम्पन्न और मनरूपी लगाम को काबू में रखनेवाला होता है, वही संसाररूपी मार्ग को पार करता है, जहाँ विष्णुका परमपद है ॥

आत्मानं रथिनं विद्धि शरीरं रथमेव तु॥२१॥
बुद्धिं तु सारथिं विद्धि मनः प्रग्रहमेव च।।
इन्द्रियाणि हयानाहुर्विषयांश्चेषु गोचरान्॥२२॥
आत्मेन्द्रियमनोयुक्तंभोक्तेत्याहुर्मनीषिणः।
यस्त्वविज्ञानवान् भवत्ययुक्तेन मनसा सदा॥ २३॥
न सत्पदमवाप्नोति संसारञ्चाधिगच्छति।।
यस्तु विज्ञानवान् भवति युक्तेन मनसा सदा॥ २४॥
स तत्पदमवाप्नोति यस्माद्भूयो न जायते।
विज्ञानसारथिर्यस्तु मनःप्रग्रहवान्नरः॥ २५॥
सोऽध्वानं परमाप्नोति तद्विष्णोः परमं पदम्।
         
.....गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित.. यमगीता.(अग्निपुराण) २१-२५.१/२ से







1 टिप्पणी:

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध-पांचवां अध्याय..(पोस्ट०९)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - पाँचवा अध्याय..(पोस्ट०९) विदुरजीका प्रश्न  और मैत्रेयजीका सृष्टिक्रमवर्णन देव...