☼ श्रीदुर्गादेव्यै
नमो नम: ☼
अथ
श्रीदुर्गासप्तशती
श्रीदुर्गामानस पूजा (पोस्ट १२)
श्रीदुर्गामानस पूजा (पोस्ट १२)
घृतद्रवपरिस्फुरद्रुचिररत्नयष्ट्यान्वितो
महातिमिरनाशनः सुरनितम्बिनीनिर्मितः ।
सुवर्णचषकस्थितः सघनसारवर्त्यान्वित-
स्तव त्रिपुरसुन्दरि स्फुरति देवि दीपो मुदे ॥ १२॥
देवी
त्रिपुरसुन्दरी! तुम्हारी प्रसन्नता के लिये यहाँ यह दीप प्रकाशित हो रहा है। यह घी से जलता है; इसकी दीयटमें सुन्दर रत्नका डंडा लगा है, इसे
देवाङ्गनाओं ने बनाया है। यह दीपक सुवर्णके चषक (पात्र) में जलाया गया है। इसमें
कपूर के साथ बत्ती रखी है। यह भारी-से-भारी अन्धकार का भी नाश करनेवाला है॥१२॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक कोड 1281 से
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