☼ श्रीदुर्गादेव्यै
नमो नम: ☼
अथ
श्रीदुर्गासप्तशती
श्रीदुर्गामानस पूजा (पोस्ट १३)
श्रीदुर्गामानस पूजा (पोस्ट १३)
जातीसौरभनिर्भरं रुचिकरं शाल्योदनं निर्मलं
युक्तं हिङ्गुमरीचजीरसुरभिर्द्रव्यान्वितैर्व्यञ्जनैः ।
पक्वान्नेन सपायसेन मधुना दध्याज्यसम्मिश्रितं
नैवेद्यं सुरकामिनीविरचितं श्रीचण्डिके त्वन्मुदे ॥ १३॥
श्रीचण्डिका
देवि! देववधुओंने तुम्हारी प्रसन्नताके लिये यह दिव्य नैवेद्य तैयार किया है, इसमें अगहनीके चावलका स्वच्छ भात है, जो बहुत ही
रुचिकर और चमेली के सुगन्धसे वासित है। साथ ही हींग, मिर्च
और जीरा आदि सुगन्धित द्रव्योंसे छौंक-बघारकर बनाये हुए नाना प्रकारके व्यञ्जन भी
हैं, इसमें भाँति-भाँतिके पकवान, खीर,
मधु, दही और घीका भी मेल है॥१३॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीदुर्गासप्तशती पुस्तक कोड 1281 से
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