|| ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ||
“सदा सेव्या सदा सेव्या श्रीमद्भागवती कथा |
यस्या: श्रवणमात्रेण हरिश्चित्तं समाश्रयेत् ||”
यस्या: श्रवणमात्रेण हरिश्चित्तं समाश्रयेत् ||”
श्रीमद्भागवत की कथा का सदा-सर्वदा सेवन, आस्वादन करना चाहिए | इसके श्रवणमात्र से श्रीहरि हृदय में आ विराजते हैं |
इस ग्रन्थमें अठारह हजार श्लोक और बारह स्कन्ध हैं तथा श्रीशुकदेव और राजा परीक्षित् का संवाद है । यह जीव तभी तक अज्ञानवश इस संसारचक्र में भटकता है, जबतक क्षणभर के लिये भी कानों में इस शुकशास्त्र की कथा नहीं पड़ती | बहुत-से शास्त्र और पुराण सुननेसे क्या लाभ है, इससे तो व्यर्थ का भ्रम बढ़ता है । मुक्ति देने के लिये तो एकमात्र भागवतशास्त्र ही गरज रहा है | जिस घर में नित्यप्रति श्रीमद्भागवत की कथा होती है, वह तीर्थरूप हो जाता है और जो लोग उसमें रहते हैं, उनके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं | हजारों अश्वमेध और सैकड़ों वाजपेय यज्ञ इस शुकशास्त्र की कथा का सोलहवाँ अंश भी नहीं हो सकते | जब तक लोग अच्छी तरह श्रीमद्भागवत का श्रवण नहीं करते, तभी तक उनके शरीर में पाप निवास करते हैं | फल की दृष्टि से इस शुकशास्त्रकथा की समता गङ्गा, गया, काशी, पुष्कर या प्रयाग—कोई तीर्थ भी नहीं कर सकता |
जो पुरुष अन्तसमय में श्रीमद्भागवत का वाक्य सुन लेता है, उस पर प्रसन्न होकर भगवान् उसे वैकुण्ठधाम देते हैं |
“अन्तकाले तु येनैव श्रूयते शुकशास्त्रवाक् |
प्रीत्या तस्यैव वैकुण्ठं गोविन्दोऽपि प्रयच्छति ||”
प्रीत्या तस्यैव वैकुण्ठं गोविन्दोऽपि प्रयच्छति ||”
कलियुग में जीवों के उद्धार के लिए श्रीमद्भागवत ही एकमात्र उपाय है।
|| ॐ तत्सत् ||
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