सोमवार, 3 जून 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण सप्तम स्कन्ध – पहला अध्याय..(पोस्ट०५)


॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
सप्तम स्कन्ध – पहला अध्याय..(पोस्ट०५)

नारद-युधिष्ठिर-संवाद और जय-विजय की कथा

एतद्वेदितुमिच्छामः सर्व एव वयं मुने
भगवन्निन्दया वेनो द्विजैस्तमसि पातितः ||१६||
दमघोषसुतः पाप आरभ्य कलभाषणात्
सम्प्रत्यमर्षी गोविन्दे दन्तवक्रश्च दुर्मतिः ||१७||
शपतोरसकृद्विष्णुं यद्ब्रह्म परमव्ययम्
श्वित्रो न जातो जिह्वायां नान्धं विविशतुस्तमः ||१८||
कथं तस्मिन्भगवति दुरवग्राह्यधामनि
पश्यतां सर्वलोकानां लयमीयतुरञ्जसा ||१९||
एतद्भ्राम्यति मे बुद्धिर्दीपार्चिरिव वायुना
ब्रूह्येतदद्भुततमं भगवान्ह्यत्र कारणम् ||२०||

नारदजी ! इसका रहस्य हम सभी जानना चाहते हैं। पूर्वकाल में भगवान्‌ की निन्दा करने के कारण ऋषियोंने राजा वेनको नरकमें डाल दिया था ॥ १६ ॥ यह दमघोषका लडक़ा पापात्मा शिशुपाल और दुर्बुद्धि दन्तवक्त्रदोनों ही जब से तुतलाकर बोलने लगे थे, तब से अब तक भगवान्‌ से द्वेष ही करते रहे हैं ॥ १७ ॥ अविनाशी परब्रह्म भगवान्‌ श्रीकृष्ण को ये पानी पी-पीकर गाली देते रहे हैं। परंतु इसके फलस्वरूप न तो इनकी जीभ में कोढ़ ही हुआ और न इन्हें घोर अन्धकारमय नरक की ही प्राप्ति हुई ॥ १८ ॥ प्रत्युत जिन भगवान्‌ की प्राप्ति अत्यन्त कठिन है, उन्हीं में ये दोनों सब के देखते-देखते अनायास ही लीन हो गयेइसका क्या कारण है ? ॥ १९ ॥ हवा के झोंके से लडख़ड़ाती हुई दीपक की लौ के समान मेरी बुद्धि इस विषय में बहुत आगा-पीछा कर रही है। आप सर्वज्ञ हैं, अत: इस अद्भुत घटनाका रहस्य समझाइये ॥ २० ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




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