॥ ॐ नमो भगवते
वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
सप्तम
स्कन्ध – पहला
अध्याय..(पोस्ट०५)
नारद-युधिष्ठिर-संवाद
और जय-विजय की कथा
एतद्वेदितुमिच्छामः
सर्व एव वयं मुने
भगवन्निन्दया
वेनो द्विजैस्तमसि पातितः ||१६||
दमघोषसुतः
पाप आरभ्य कलभाषणात्
सम्प्रत्यमर्षी
गोविन्दे दन्तवक्रश्च दुर्मतिः ||१७||
शपतोरसकृद्विष्णुं
यद्ब्रह्म परमव्ययम्
श्वित्रो
न जातो जिह्वायां नान्धं विविशतुस्तमः ||१८||
कथं
तस्मिन्भगवति दुरवग्राह्यधामनि
पश्यतां
सर्वलोकानां लयमीयतुरञ्जसा ||१९||
एतद्भ्राम्यति
मे बुद्धिर्दीपार्चिरिव वायुना
ब्रूह्येतदद्भुततमं
भगवान्ह्यत्र कारणम् ||२०||
नारदजी
! इसका रहस्य हम सभी जानना चाहते हैं। पूर्वकाल में भगवान् की निन्दा करने के
कारण ऋषियोंने राजा वेनको नरकमें डाल दिया था ॥ १६ ॥ यह दमघोषका लडक़ा पापात्मा
शिशुपाल और दुर्बुद्धि दन्तवक्त्र—दोनों ही जब से
तुतलाकर बोलने लगे थे, तब से अब तक भगवान् से द्वेष ही करते
रहे हैं ॥ १७ ॥ अविनाशी परब्रह्म भगवान् श्रीकृष्ण को ये पानी पी-पीकर गाली देते
रहे हैं। परंतु इसके फलस्वरूप न तो इनकी जीभ में कोढ़ ही हुआ और न इन्हें घोर
अन्धकारमय नरक की ही प्राप्ति हुई ॥ १८ ॥ प्रत्युत जिन भगवान् की प्राप्ति
अत्यन्त कठिन है, उन्हीं में ये दोनों सब के देखते-देखते
अनायास ही लीन हो गये—इसका क्या कारण है ? ॥ १९ ॥ हवा के झोंके से लडख़ड़ाती हुई दीपक की लौ के समान मेरी बुद्धि इस
विषय में बहुत आगा-पीछा कर रही है। आप सर्वज्ञ हैं, अत: इस
अद्भुत घटनाका रहस्य समझाइये ॥ २० ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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