: श्रीहरि :
भगवान् की आवश्यकता का अनुभव करना
(पोस्ट ३)
हमारी आवश्यकता परमात्मतत्त्वकी है
। इस आवश्यकताको हम कभी भूलें नहीं, इसको
हरदम जाग्रत् रखें । नींद आ जाय तो आने दें, पर अपनी तरफसे
आवश्यकताकी भूली मत होने दें । भगवान्की प्राप्ति हो जाय, उनमें
प्रेम हो जाय‒इस प्रकार आठ पहर इसको जाग्रत् रखें तो काम
पूरा हो जायगा ! बीचमें दूसरी इच्छाएँ होती रहेंगी तो ज्यादा समय लग जायगा । दूसरी
इच्छा पैदा हो तो जबान हिला दें कि नहीं-नहीं, मेरी कोई
इच्छा नहीं! अगर दूसरी इच्छा न रहे तो आठ पहर भी नहीं लगेंगे
‒गीताप्रेस गोरखपुर
द्वारा प्रकाशित ‘लक्ष्य अब दूर नहीं !’ पुस्तक से
प्रेरणादायी लेख,सटीक मार्गदर्शन के लिए कोटिशः नमन🙏🙏
जवाब देंहटाएंJay Shree krishna
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