सोमवार, 1 जुलाई 2019

नाम-जपकी विधि (पोस्ट ०४)

।। श्रीहरिः ।।

नाम-जपकी विधि (पोस्ट ०४)

सन्तोंने भगवान्‌से भक्ति माँगी है । अच्छे-अच्छे महात्मा पुरुषोंने भगवान्‌के चरणोंका प्रेम माँगा है‒

“जाहि न चाहिअ कबहुँ कछु तुम्ह सन सहज सनेहु ।
बसहु निरंतर तासु मन सो राउर निज गेहु ॥“

भगवान् शंकर माँगते हैं‒

“बार बार बर मागउँ हरषि देहु श्रीरंग ।
पद सरोज अनपायनी भगति सदा सतसंग ॥“

तो उनके कौन-सी कमी रह गयी ? पर यह माँगना सकाम नहीं है । तीर्थ, दान आदि के जितने पुण्य हैं, उन सब का एक फल माँगे कि भगवान्‌ के चरणों में प्रीति हो जाय । हे नाथ ! आपके चरणों में प्रेम हो जाय, आकर्षण हो जाय । भगवान् हमें प्यारे लगें, मीठे लगें । यह कामना करो । यह कामना सांसारिक नहीं है ।

भगवान्‌ का नाम लेते हुए आनन्द मनाओ, प्रसन्न हो जाओ कि मुख में भगवान्‌ का नाम आ गया, हम तो निहाल हो गये ! आज तो भगवान्‌ ने विशेष कृपा कर दी, जो नाम मुख में आ गया । नहीं तो मेरे-जैसे के लिये भगवान्‌ का नाम कहाँ ? जिनके याद करने मात्र से मंगल हो जाय ऐसे जिस नाम को भगवान् शंकर जपते हैं‒

तुम्ह पुनि राम राम दिन राती ।
सादर जपहु अनंग आराती ॥

वह नाम मिल जाय हमारे को । कलियुगी तो हम जीव और राम-नाम मिल जाय तो बस मौज हो गयी, भगवान्‌ ने विशेष ही कृपा कर दी । ऐसी सम्मति मिल गयी, हमारे को भगवान्‌ की याद आ गयी । भगवान्‌ की बात सुनने को मिली है; भगवान्‌की चर्चा मिली है, भगवान्‌ का नाम मिला है,भगवान्‌ की तरफ वृत्ति हो गयी है‒ऐसे समझकर खूब आनन्द मनावें, खूब खुशी मनावें, प्रसन्नता मनावें ।

एक बात और विलक्षण है ! उस पर आप ध्यान दें । बहुत ही लाभकी बात है, (६) जब कभी भगवान् अचानक याद आ जाये भगवान्‌ का नाम अचानक याद आ जाय,भगवान्‌ की लीला अचानक याद आ जाय, उस समय यह समझे कि भगवान् मेरे को याद करते हैं । भगवान्‌ ने अभी मेरे को याद किया है । नहीं तो मैंने उद्योग ही नहीं किया, फिर अचानक ही भगवान् कैसे याद आये ? ऐसा समझकर प्रसन्न हो जाओ कि मैं तो निहाल हो गया । मेरे को भगवान्‌ ने याद कर लिया । अब और काम पीछे करेंगे । अब तो भगवान्‌ में ही लग जाना है; क्योंकि भगवान् याद करते हैं,ऐसा मौका कहाँ पड़ा है ? ऐसे लग जाओ तो बहुत ज्यादा भक्ति है । जब अंगद रवाना हुए और उनको पहुँचाने हनुमान्‌ जी गये तो अंगद ने कहा‒‘बार बार रघुनायकहि सुरति कराएहु मोरि’ याद कराते रहना रामजी को । तात्पर्य जिस समय अचानक भगवान् याद आते हैं, उस समय को खूब मूल्यवान् समझकर तत्परता से लग जाओ । इस प्रकार छः बातें हो गयीं ।

“गुप्त अकाम निरन्तर, ध्यान-सहित सानन्द ।
आदर जुत जप से तुरत, पावत परमानन्द ॥“

नारायण ! नारायण !!

(शेष आगामी पोस्ट में )
---गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित, श्रद्धेय स्वामी रामसुखदास जी की ‘भगवन्नाम’ पुस्तकसे


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