॥ ॐ नमो भगवते
वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
सप्तम
स्कन्ध – सातवाँ
अध्याय..(पोस्ट०८)
प्रह्लादजी
द्वारा माता के गर्भ में प्राप्त हुए
नारद
जी के उपदेश का वर्णन
हरिः
सर्वेषु भूतेषु भगवानास्त ईश्वरः
इति
भूतानि मनसा कामैस्तैः साधु मानयेत् ||३२||
एवं
निर्जितषड्वर्गैः क्रियते भक्तिरीश्वरे
वासुदेवे
भगवति यया संलभ्यते रतिः ||३३||
सर्वशक्तिमान्
भगवान् श्रीहरि समस्त प्राणियों में विराजमान हैं—ऐसी भावना से
यथाशक्ति सभी प्राणियों की इच्छा पूर्ण करे और हृदय से उनका सम्मान करे ॥ ३२ ॥ काम,क्रोध,लोभ, मोह,मद और मत्सर—इन छ: शत्रुओं पर विजय प्राप्त करके जो
लोग इस प्रकार भगवान् की साधन-भक्ति का
अनुष्ठान करते हैं,
उन्हें उस भक्तिके द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण के चरणों में
अनन्य प्रेम की प्राप्ति हो जाती है ॥ ३३ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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