॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
सप्तम
स्कन्ध – बारहवाँ
अध्याय..(पोस्ट०३)
ब्रह्मचर्य
और वानप्रस्थ-आश्रमोंके नियम
अग्नौ
गुरावात्मनि च सर्वभूतेष्वधोक्षजम् ।
भूतैः
स्वधामभिः पश्येद् अप्रविष्टं प्रविष्टवत् ॥ १५ ॥
एवं
विधो ब्रह्मचारी वानप्रस्थो यतिर्गृही ।
चरन्विदितविज्ञानः
परं ब्रह्माधिगच्छति ॥ १६ ॥
यद्यपि
भगवान् स्वरूपत: सर्वत्र एकरस स्थित हैं, अतएव उनका कहीं
प्रवेश करना या निकलना नहीं हो सकता—फिर भी अग्नि, गुरु, आत्मा और समस्त प्राणियोंमें अपने आश्रित
जीवोंके साथ वे विशेषरूपसे विराजमान हैं। इसलिये उनपर सदा दृष्टि जमी रहनी चाहिये
॥ १५ ॥ इस प्रकार आचरण करनेवाला ब्रह्मचारी, वानप्रस्थ,
संन्यासी अथवा गृहस्थ विज्ञानसम्पन्न होकर परब्रह्मतत्त्व का अनुभव
प्राप्त कर लेता है ॥ १६ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
श्री हरि
जवाब देंहटाएंOm namo bhagawate vasudevay 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएं🌸🥀🌾🌸जय श्री हरि: !!🙏🙏
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