ॐ नमो भगवते
वासुदेवाय
इस
मनुष्य-जन्म में श्रीभगवान् के चरणों की शरण लेना ही जीवन की एकमात्र सफलता है ।
क्योंकि भगवान् समस्त प्राणियोंके स्वामी, सुहृद्, प्रियतम और आत्मा हैं ॥ भाइयो ! इन्द्रियों से जो सुख भोगा जाता है,
वह तो—जीव चाहे जिस योनि में रहे—प्रारब्ध के अनुसार सर्वत्र वैसे ही मिलता रहता है, जैसे
बिना किसी प्रकार का प्रयत्न किये, निवारण करनेपर भी दु:ख
मिलता है ॥ इसलिये सांसारिक सुख के उद्देश्य से प्रयत्न करने की कोई आवश्यकता नहीं
है । क्योंकि स्वयं मिलनेवाली वस्तुके लिये परिश्रम करना आयु और शक्ति को व्यर्थ
गँवाना है । जो इनमें उलझ जाते हैं, उन्हें भगवान् के परम
कल्याण-स्वरूप चरणकमलों की प्राप्ति नहीं होती ॥ ४ ॥
…..श्रीमद्भागवत
7/6/2-4
जय श्रीहरि
जवाब देंहटाएं🌹🍂🌼जय श्री हरि: !!🙏🙏
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