॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
सप्तम
स्कन्ध – ग्यारहवाँ
अध्याय..(पोस्ट०४)
मानवधर्म, वर्णधर्म और स्त्रीधर्म का निरूपण
शमो
दमस्तपः शौचं सन्तोषः क्षान्तिरार्जवम् ।
ज्ञानं
दयाच्युतात्मत्वं सत्यं च ब्रह्मलक्षणम् ॥ २१ ॥
शौर्यं
वीर्यं धृतिस्तेजः त्याग आत्मजयः क्षमा ।
ब्रह्मण्यता
प्रसादश्च सत्यं च क्षत्रलक्षणम् ॥ २२ ॥
देवगुर्वच्युते
भक्तिः त्रिवर्गपरिपोषणम् ।
आस्तिक्यं
उद्यमो नित्यं नैपुण्यं वैश्यलक्षणम् ॥ २३ ॥
शूद्रस्य
सन्नतिः शौचं सेवा स्वामिन्यमायया ।
अमन्त्रयज्ञो
ह्यस्तेयं सत्यं गोविप्र रक्षणम् ॥ २४ ॥
शम, दम, तप, शौच, सन्तोष, क्षमा, सरलता, ज्ञान, दया, भगवत्परायणता और
सत्य—ये ब्राह्मणके लक्षण हैं ॥ २१ ॥ युद्धमें उत्साह,
वीरता, धीरता, तेजस्विता,
त्याग, मनोजय, क्षमा,
ब्राह्मणोंके प्रति भक्ति, अनुग्रह और प्रजाकी
रक्षा करना—ये क्षत्रियके लक्षण हैं ॥ २२ ॥ देवता, गुरु और भगवान् के प्रति भक्ति, अर्थ, धर्म और काम—इन तीनों पुरुषार्थों की रक्षा करना;
आस्तिकता, उद्योगशीलता और व्यावहारिक निपुणता—ये वैश्य के लक्षण हैं ॥ २३ ॥ उच्च वर्णों के सामने विनम्र रहना, पवित्रता, स्वामीकी निष्कपट सेवा, वैदिक मन्त्रोंसे रहित यज्ञ, चोरी न करना, सत्य तथा गौ-ब्राह्मणोंकी रक्षा करना—ये शूद्रके
लक्षण हैं ॥ २४ ॥
शेष
आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
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