॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – पहला
अध्याय..(पोस्ट०१)
मन्वन्तरोंका वर्णन
श्रीराजोवाच
स्वायम्भुवस्येह गुरो वंशोऽयं विस्तराच्छ्रुतः
यत्र विश्वसृजां सर्गो मनूनन्यान्वदस्व नः ||१||
मन्वन्तरे हरेर्जन्म कर्माणि च महीयसः
गृणन्ति कवयो ब्रह्मंस्तानि नो वद शृण्वताम् ||२||
यद्यस्मिन्नन्तरे ब्रह्मन्भगवान्विश्वभावनः
कृतवान्कुरुते कर्ता ह्यतीतेऽनागतेऽद्य वा ||३||
श्रीऋषिरुवाच
मनवोऽस्मिन्व्यतीताः षट्कल्पे स्वायम्भुवादयः
आद्यस्ते कथितो यत्र देवादीनां च सम्भवः ||४||
आकूत्यां देवहूत्यां च दुहित्रोस्तस्य वै मनोः
धर्मज्ञानोपदेशार्थं भगवान्पुत्रतां गतः ||५||
कृतं पुरा भगवतः कपिलस्यानुवर्णितम्
आख्यास्ये भगवान्यज्ञो यच्चकार कुरूद्वह ||६||
विरक्तः कामभोगेषु शतरूपापतिः प्रभुः
विसृज्य राज्यं तपसे सभार्यो वनमाविशत् ||७||
सुनन्दायां वर्षशतं पदैकेन भुवं स्पृशन्
तप्यमानस्तपो घोरमिदमन्वाह भारत ||८||
राजा परीक्षित् ने पूछा—गुरुदेव ! स्वायम्भुव मनुका वंश-विस्तार मैंने सुन लिया। इसी वंश में उनकी
कन्याओं के द्वारा मरीचि आदि प्रजापतियोंने अपनी वंश-परम्परा चलायी थी। अब आप हमसे
दूसरे मनुओंका वर्णन कीजिये ॥ १ ॥ ब्रह्मन् ! ज्ञानी महात्मा जिस-जिस मन्वन्तर में
महामहिम भगवान् के जिन-जिन अवतारों और लीलाओं का वर्णन करते हैं, उन्हें आप अवश्य सुनाइये। हम बड़ी श्रद्धा से उनका श्रवण
करना चाहते हैं ॥ २ ॥ भगवन् ! विश्वभावन भगवान् बीते हुए मन्वन्तरोंमें जो-जो
लीलाएँ कर चुके हैं,
वर्तमान मन्वन्तरमें जो कर रहे हैं और आगामी मन्वन्तरोंमें
जो कुछ करेंगे,
वह सब हमें सुनाइये ॥ ३ ॥
श्रीशुकदेवजीने कहा—इस कल्पमें स्वायम्भुव आदि छ: मन्वन्तर बीत चुके हैं। उनमेंसे पहले मन्वन्तरका
मैंने वर्णन कर दिया,
उसीमें देवता आदिकी उत्पत्ति हुई थी ॥ ४ ॥ स्वायम्भुव मनुकी
पुत्री आकूतिसे यज्ञपुरुषके रूपमें धर्मका उपदेश करनेके लिये तथा देवहूतिसे कपिलके
रूपमें ज्ञानका उपदेश करनेके लिये भगवान्ने उनके पुत्ररूपसे अवतार ग्रहण किया था
॥ ५ ॥ परीक्षित् ! भगवान् कपिलका वर्णन मैं पहले ही (तीसरे स्कन्धमें) कर चुका
हूँ। अब भगवान् यज्ञपुरुषने आकूतिके गर्भसे अवतार लेकर जो कुछ किया, उसका वर्णन करता हूँ ॥ ६ ॥
परीक्षित् ! भगवान् स्वायम्भुव मनु ने समस्त कामनाओं और
भोगों से विरक्त होकर राज्य छोड़ दिया। वे अपनी पत्नी शतरूपा के साथ तपस्या करने के
लिये वनमें चले गये ॥ ७ ॥ परीक्षित् ! उन्होंने सुनन्दा नदीके किनारे पृथ्वीपर एक
पैर से खड़े रहकर सौ वर्षतक घोर तपस्या की। तपस्या करते समय वे प्रतिदिन इस प्रकार
भगवान् की स्तुति करते थे ॥ ८ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
जय श्री हरि
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🙏
जवाब देंहटाएंजय श्री हरि
जवाब देंहटाएं🌸🌿🥀 जय श्री हरि: !!🙏🙏
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🙏