बुधवार, 21 अगस्त 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – पहला अध्याय..(पोस्ट०१)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – पहला अध्याय..(पोस्ट०१)

मन्वन्तरोंका वर्णन

श्रीराजोवाच
स्वायम्भुवस्येह गुरो वंशोऽयं विस्तराच्छ्रुतः
यत्र विश्वसृजां सर्गो मनूनन्यान्वदस्व नः ||||
मन्वन्तरे हरेर्जन्म कर्माणि च महीयसः
गृणन्ति कवयो ब्रह्मंस्तानि नो वद शृण्वताम् ||||
यद्यस्मिन्नन्तरे ब्रह्मन्भगवान्विश्वभावनः
कृतवान्कुरुते कर्ता ह्यतीतेऽनागतेऽद्य वा ||||

श्रीऋषिरुवाच
मनवोऽस्मिन्व्यतीताः षट्कल्पे स्वायम्भुवादयः
आद्यस्ते कथितो यत्र देवादीनां च सम्भवः ||||
आकूत्यां देवहूत्यां च दुहित्रोस्तस्य वै मनोः
धर्मज्ञानोपदेशार्थं भगवान्पुत्रतां गतः ||||
कृतं पुरा भगवतः कपिलस्यानुवर्णितम्
आख्यास्ये भगवान्यज्ञो यच्चकार कुरूद्वह ||||
विरक्तः कामभोगेषु शतरूपापतिः प्रभुः
विसृज्य राज्यं तपसे सभार्यो वनमाविशत् ||||
सुनन्दायां वर्षशतं पदैकेन भुवं स्पृशन्
तप्यमानस्तपो घोरमिदमन्वाह भारत ||||

राजा परीक्षित्‌ ने पूछागुरुदेव ! स्वायम्भुव मनुका वंश-विस्तार मैंने सुन लिया। इसी वंश में उनकी कन्याओं के द्वारा मरीचि आदि प्रजापतियोंने अपनी वंश-परम्परा चलायी थी। अब आप हमसे दूसरे मनुओंका वर्णन कीजिये ॥ १ ॥ ब्रह्मन् ! ज्ञानी महात्मा जिस-जिस मन्वन्तर में महामहिम भगवान्‌ के जिन-जिन अवतारों और लीलाओं का वर्णन करते हैं, उन्हें आप अवश्य सुनाइये। हम बड़ी श्रद्धा से उनका श्रवण करना चाहते हैं ॥ २ ॥ भगवन् ! विश्वभावन भगवान्‌ बीते हुए मन्वन्तरोंमें जो-जो लीलाएँ कर चुके हैं, वर्तमान मन्वन्तरमें जो कर रहे हैं और आगामी मन्वन्तरोंमें जो कुछ करेंगे, वह सब हमें सुनाइये ॥ ३ ॥
श्रीशुकदेवजीने कहाइस कल्पमें स्वायम्भुव आदि छ: मन्वन्तर बीत चुके हैं। उनमेंसे पहले मन्वन्तरका मैंने वर्णन कर दिया, उसीमें देवता आदिकी उत्पत्ति हुई थी ॥ ४ ॥ स्वायम्भुव मनुकी पुत्री आकूतिसे यज्ञपुरुषके रूपमें धर्मका उपदेश करनेके लिये तथा देवहूतिसे कपिलके रूपमें ज्ञानका उपदेश करनेके लिये भगवान्‌ने उनके पुत्ररूपसे अवतार ग्रहण किया था ॥ ५ ॥ परीक्षित्‌ ! भगवान्‌ कपिलका वर्णन मैं पहले ही (तीसरे स्कन्धमें) कर चुका हूँ। अब भगवान्‌ यज्ञपुरुषने आकूतिके गर्भसे अवतार लेकर जो कुछ किया, उसका वर्णन करता हूँ ॥ ६ ॥
परीक्षित्‌ ! भगवान्‌ स्वायम्भुव मनु ने समस्त कामनाओं और भोगों से विरक्त होकर राज्य छोड़ दिया। वे अपनी पत्नी शतरूपा के साथ तपस्या करने के लिये वनमें चले गये ॥ ७ ॥ परीक्षित्‌ ! उन्होंने सुनन्दा नदीके किनारे पृथ्वीपर एक पैर से खड़े रहकर सौ वर्षतक घोर तपस्या की। तपस्या करते समय वे प्रतिदिन इस प्रकार भगवान्‌ की स्तुति करते थे ॥ ८ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




4 टिप्‍पणियां:

श्रीमद्भागवतमहापुराण तृतीय स्कन्ध - सत्ताईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०४)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥ श्रीमद्भागवतमहापुराण  तृतीय स्कन्ध - सत्ताईसवाँ अध्याय..(पोस्ट०४) प्रकृति-पुरुषके विवेक से मोक्ष-प्राप्ति का वर्णन...