शनिवार, 24 अगस्त 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण अष्टम स्कन्ध – दूसरा अध्याय..(पोस्ट०२)



॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – दूसरा अध्याय..(पोस्ट०२)

ग्राहके द्वारा गजेन्द्रका पकड़ा जाना

तस्य द्रोण्यां भगवतो वरुणस्य महात्मनः ।
उद्यानं ऋतुमन्नाम आक्रीडं सुरयोषिताम् ॥ ९ ॥
सर्वतोऽलंकृतं दिव्यैः नित्यपुष्पफलद्रुमैः ।
मन्दारैः पारिजातैश्च पाटलाशोकचम्पकैः ॥ १० ॥
चूतैः पियालैः पनसैः आम्रैः आम्रातकैरपि ।
क्रमुकैर्नारिकेलैश्च खर्जूरैः बीजपूरकैः ॥ ११ ॥
मधुकैः शालतालैश्च तमालै रसनार्जुनैः ।
अरिष्टोडुम्बरप्लक्षैः वटैः किंशुकचन्दनैः ॥ १२ ॥
पिचुमर्दैः कोविदारैः सरलैः सुरदारुभिः ।
द्राक्षेक्षु रम्भाजम्बुभिः बदर्यक्षाभयामलैः ॥ १३ ॥
बिल्वैः कपित्थैर्जम्बीरैः वृतो भल्लातकादिभिः ।
तस्मिन्सरः सुविपुलं लसत्काञ्चनपंकजम् ॥ १४ ॥
कुमुदोत्पलकह्लार शतपत्रश्रियोर्जितम् ।
मत्तषट्पदनिर्घुष्टं शकुन्तैश्च कलस्वनैः ॥ १५ ॥
हंसकारण्डवाकीर्णं चक्राह्वैः सारसैरपि ।
जलकुक्कुटकोयष्टि दात्यूहकुलकूजितम् ॥ १६ ॥
मत्स्यकच्छपसञ्चार चलत्पद्मरजःपयः ।
कदम्बवेतसनल नीपवञ्जुलकैर्वृतम् ॥ १७ ॥
कुन्दैः कुरुबकाशोकैः शिरीषैः कूटजेङ्‌गुदैः ।
कुब्जकैः स्वर्णयूथीभिः नागपुन्नाग जातिभिः ॥ १८ ॥
मल्लिकाशतपत्रैश्च माधवीजालकादिभिः ।
शोभितं तीरजैश्चान्यैः नित्यर्तुभिरलं द्रुमैः ॥ १९ ॥

पर्वतराज त्रिकूट की तराई में भगवत्प्रेमी महात्मा भगवान्‌ वरुण का एक उद्यान था। उसका नाम था ऋतुमान्। उसमें देवाङ्गनाएँ क्रीडा करती रहती थीं ॥ ९ ॥ उसमें सब ओर ऐसे दिव्य वृक्ष शोभायमान थे, जो फलों और फूलोंसे सर्वदा लदे ही रहते थे। उस उद्यानमें मन्दार, पारिजात, गुलाब, अशोक, चम्पा, तरह-तरहके आम, पयाल, कटहल, आमड़ा, सुपारी, नारियल, खजूर, बिजौरा, महुआ, साखू, ताड़, तमाल, असन, अर्जुन, रीठा, गूलर, पाकर, बरगद, पलास, चन्दन, नीम, कचनार, साल, देवदारु, दाख, ईख, केला, जामुन, बेर, रुद्राक्ष, हर्रे, आँवला, बेल, कैथ, नीबू और भिलावे आदिके वृक्ष लहराते रहते थे। उस उद्यानमें एक बड़ा भारी सरोवर था। उसमें सुनहले कमल खिल रहे थे ॥ १०१४ ॥ और भी विविध जातिके कुमुद, उत्पल, कह्लार, शतदल आदि कमलोंकी अनूठी छटा छिटक रही थी। मतवाले भौं.रे गूँज रहे थे। मनोहर पक्षी कलरव कर रहे थे। हंस, कारण्डव, चक्रवाक और सारस दल-के-दल भरे हुए थे। पनडुब्बी, बतख और पपीहे कूज रहे थे। मछली और कछुओंके चलनेसे कमलके फूल हिल जाते थे, जिससे उनका पराग झडक़र जलको सुन्दर और सुगन्धित बना देता था। कदम्ब, बेंत, नरकुल, कदम्बलता, बेन आदि वृक्षोंसे वह घिरा था ॥ १५१७ ॥ कुन्द, कुरबक (कटसरैया), अशोक, सिरस, वनमल्लिका, लिसौडा, हरसिंगार, सोनजूही, नाग, पुन्नाग, जाती, मल्लिका, शतपत्र, माधवी और मोगरा आदि सुन्दर-सुन्दर पुष्पवृक्ष एवं तटके दूसरे वृक्षोंसे भीजो प्रत्येक ऋतुमें हरे-भरे रहते थेवह सरोवर शोभायमान रहता था ॥ १८-१९ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण  (विशिष्टसंस्करण)  पुस्तककोड 1535 से




6 टिप्‍पणियां:

  1. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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  2. जय श्री सीताराम

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  3. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय कृष्णाय वासुदेवाय हरए परमात्मने नमः

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  4. Om namo bhagawate vasudevay 🙏🙏🙏🙏

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  5. 🌸🌿🌼जय श्री हरि: !!🙏🙏
    ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

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