बुधवार, 7 अगस्त 2019

श्रीमद्भागवतमहापुराण सप्तम स्कन्ध – तेरहवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)

॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥

श्रीमद्भागवतमहापुराण
सप्तम स्कन्ध – तेरहवाँ अध्याय..(पोस्ट०३)

यतिधर्मका निरूपण और अवधूत-प्रह्लाद-संवाद

श्रीनारद उवाच

स इत्थं दैत्यपतिना परिपृष्टो महामुनिः
स्मयमानस्तमभ्याह तद्वागमृतयन्त्रितः ॥ १९ ॥

श्रीब्राह्मण उवाच

वेदेदमसुरश्रेष्ठ भवान्नन्वार्यसम्मतः
ईहोपरमयोर्नॄणां पदान्यध्यात्मचक्षुषा ॥ २० ॥
यस्य नारायणो देवो भगवान्हृद्गतः सदा
भक्त्या केवलयाज्ञानं धुनोति ध्वान्तमर्कवत् ॥ २१ ॥
तथापि ब्रूमहे प्रश्नांस्तव राजन्यथाश्रुतम्
सम्भाषणीयो हि भवानात्मनः शुद्धिमिच्छता ॥ २२ ॥


नारदजी कहते हैं—धर्मराज ! जब प्रह्लादजीने महामुनि दत्तात्रेयजीसे इस प्रकार प्रश्न किया, तब वे उनकी अमृतमयी वाणीके वशीभूत हो मुसकराते हुए बोले ॥ १९ ॥
दत्तात्रेयजीने कहा—दैत्यराज ! सभी श्रेष्ठ पुरुष तुम्हारा सम्मान करते हैं। मनुष्योंको कर्मोंकी प्रवृत्ति और उनकी निवृत्तिका क्या फल मिलता है, यह बात तुम अपनी ज्ञानदृष्टिसे जानते ही हो ॥ २० ॥ तुम्हारी अनन्य भक्तिके कारण देवाधिदेव भगवान्‌ नारायण सदा तुम्हारे हृदयमें विराजमान रहते हैं और जैसे सूर्य अन्धकारको नष्ट कर देते हैं, वैसे ही वे तुम्हारे अज्ञानको नष्ट करते रहते हैं ॥ २१ ॥ तो भी प्रह्लाद ! मैंने जैसा कुछ जाना है, उसके अनुसार मैं तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर देता हूँ। क्योंकि आत्मशुद्धि के अभिलाषियों को तुम्हारा सम्मान अवश्य करना चाहिये ॥ २२ ॥

शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से






1 टिप्पणी:

  1. नारायण नारायण नारायण नारायण
    🌷💖🌸🌾 ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🙏

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