॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ॥
श्रीमद्भागवतमहापुराण
अष्टम स्कन्ध – चौबीसवाँ अध्याय..(पोस्ट०५)
भगवान् के मत्स्यावतार की कथा
तत आदाय सा राज्ञा क्षिप्ता राजन् सरोवरे ।
तद् आवृत्यात्मना सोऽयं महामीनोऽन्ववर्धत ॥ २१ ॥
नैतन्मे स्वस्तये राजन् उदकं सलिलौकसः ।
निधेहि रक्षायोगेन ह्रदे मामविदासिनि ॥ २२ ॥
इत्युक्तः सोऽनयन्मत्स्यं तत्र तत्राविदासिनि ।
जलाशयेऽसम्मितं तं समुद्रे प्राक्षिपज्झषम् ॥ २३ ॥
क्षिप्यमाणस्तमाहेदं इह मां मकरादयः ।
अदन्त्यतिबला वीर मां नेहोत्स्रष्टुमर्हसि ॥ २४ ॥
परीक्षित् ! सत्यव्रतने वहाँसे उस मछलीको उठाकर एक
सरोवरमें डाल दिया। परंतु वह थोड़ी ही देरमें इतनी बढ़ गयी कि उसने एक महामत्स्य का
आकार धारण कर उस सरोवरके जलको घेर लिया ॥ २१ ॥ और कहा—‘राजन् ! मैं जलचर प्राणी हूँ। इस सरोवरका जल भी मेरे
सुखपूर्वक रहनेके लिये पर्याप्त नहीं है। इसलिये आप मेरी रक्षा कीजिये और मुझे
किसी अगाध सरोवरमें रख दीजिये ॥ २२ ॥ मत्स्यभगवान्के इस प्रकार कहनेपर वे एक-एक
करके उन्हें कई अटूट जलवाले सरोवरोंमें ले गये; परंतु जितना बड़ा सरोवर होता, उतने ही बड़े
वे बन जाते। अन्तमें उन्होंने उन लीलामत्स्यको समुद्रमें छोड़ दिया ॥ २३ ॥
समुद्रमें डालते समय मत्स्यभगवान्ने सत्यव्रतसे कहा—‘वीर ! समुद्रमें बड़े-बड़े बली मगर आदि रहते हैं, वे मुझे खा जायँगे, इसलिये आप मुझे समुद्रके जलमें मत छोडिय़े’ ॥ २४ ॥
शेष आगामी पोस्ट में --
गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्रीमद्भागवतमहापुराण (विशिष्टसंस्करण) पुस्तककोड 1535 से
जय श्री सीताराम जय हो प्रभु
जवाब देंहटाएंJay shree Krishña
जवाब देंहटाएंनारायण नारायण नारायण नारायण
जवाब देंहटाएंॐ नमो भगवते वासुदेवाय
🌹💖🌹 जय श्री हरि: 🙏🙏